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छहढाला - छटवीं ढाल
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प्रश्न १८- व्युपरतक्रियानिवृत्ति शुक्लध्यान किसे कहते हैं ? उत्तर - जिसमें श्वासोच्छ्वास का संचार तथा सब प्रकार के मनोयोग, वचनयोग, काययोग के द्वारा
होने वाली आत्म प्रदेशों में परिस्पंदन अर्थात् हलन-चलन आदि क्रिया रुक जाती है अर्थात्
सर्व क्रिया की निवृत्ति हुई हो उसे व्युपरतक्रियानिवृत्ति शुक्ल ध्यान कहते हैं। प्रश्न १९- सकल संयमाचरण चारित्र क्या है? उत्तर - भावलिंगी मुनि शुद्धात्म स्वरूप में लीन रहकर सदा बारह प्रकार के तप और दस धर्म को
धारण करते हैं, रत्नत्रय का सेवन करते हैं, मुनियों के संघ में या अकेले विचरण करते हैं, किसी भी समय सांसारिक सुखों की इच्छा नहीं करते इसे सकल संयमाचरण चारित्र
कहते हैं। प्रश्न २०- स्वरूपाचरण चारित्र किसे कहते हैं? उत्तर - जिसके प्रगट होने से आत्मा की अनंत दर्शन,अनंतज्ञान, अनंतसुख,अनंतवीर्य आदिशक्तियों
का पूर्ण विकास होता है और पर पदार्थ के ओर की सर्वप्रकार की प्रवृत्ति दूर होती है वह स्वरूपाचरण चारित्र है।
अभ्यास के प्रश्न प्रश्न १ - रिक्त स्थान भरिये - (क) छह काय के जीवों का घात न करने से सर्व प्रकार की ----- दूर हो जाती है।
(द्रव्यहिंसा/भावहिंसा) (ख) अंतर ----- भेद बाहिर, संग ----- तैं टलैं। (चतुर्दस/ दसधा/नवधा) (ग) -----, ----- उपकरण, लखिमैं गहैं लखिमैं धरैं।
(अशुचि अज्ञान यम/शुचि ज्ञान संयम) (घ) वीतरागी मुनिराज अत्यंत तीक्ष्ण ----- और भेदविज्ञान रूप ----- डालकर --
--- में भेद करते हैं। (सम्यग्ज्ञान, छैनी, अन्तरंग/ज्ञान,पैनी, बहिरंग) (ड.) सत्य-असत्य कथन चुनिये और हाँ/नहीं में उत्तर दीजिये(१) स्वरूपाचरण चारित्र छटवें गुणस्थान में प्रगट हो जाता है।
(हाँ/नहीं) (२) शुभोपयोग द्वारा कर्म और आत्मा अलग-अलग हो जाते हैं। (हाँ/नहीं) (३) मैं सदा अनन्त दर्शन-अनन्त ज्ञान-अनन्त सुख और अनन्तवीर्यमय हूँ। (हाँ/नहीं) (४) सर्वप्रकार के विकल्पों से रहित निर्विकल्प आत्मस्थिरता को स्वरूपाचरण चारित्र कहते
(हाँ/नहीं) (५) संसार खार अपार पारावार तरि तीरहिं गये। अविकार अकल अरूप शुचि, चिद्रूप विनाशी भये ॥
(हाँ/नहीं) प्रश्न २ - लघुउत्तरीय प्रश्न -
(क) निम्नलिखित पंक्तियाँ पूर्ण कीजिये - (१) पुनि घाति ------- सब लसैं।
(छंद याद करके पूर्ण करें)