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________________ छहढाला - पाँचवी ढाल प्रश्न ९ उत्तर - - प्रश्न १०- निर्जरा अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ? उत्तर प्रश्न १३ उत्तर प्रश्न ११ - निर्जरा कितने प्रकार की होती है ? उत्तर प्रश्न १२- सविपाक निर्जरा किसे कहते हैं ? उत्तर - - उत्तर प्रश्न १८ - संवर अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ? शुभ - अशुभ भावों से उपयोग को हटाकर जिस स्वानुभूति के बल से कर्मों का आना रुका है, उसमें तन्मय होने का निरंतर चिंतन करना संवर अनुप्रेक्षा है । प्रश्न १४ - लोक अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ? उत्तर - संवर पूर्वक तप के बल से संचित कर्मों का झड़ जाना निर्जरा है ऐसा चिंतन करना निर्जरा अनुप्रेक्षा है। निर्जरा दो प्रकार की होती है - १. सविपाक निर्जरा २. अविपाक निर्जरा । प्रश्न १५- बोधिदुर्लभ अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ? उत्तर - अपना समय पूर्ण करके कर्मों का झड़ जाना सविपाक निर्जरा है और इस निर्जरा से कोई लाभ नहीं है । अविपाक निर्जरा किसे कहते हैं ? स्थिति पूरी होने के पहले ही तप के बल से कर्मों का एक देश क्षय हो जाना अविपाक निर्जरा है । इससे मोक्ष सुख प्राप्त होता है। - प्रश्न १६- धर्म अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ? उत्तर छह द्रव्यों से भरे हुए लोक को न किसी ने बनाया है, न किसी ने इसे धारण किया है और न कोई इसे नष्ट कर सकता है, ऐसे संसार में समता के बिना यह जीव भटकता हुआ दुःख भोगता रहता है ऐसा चिन्तन करना लोक अनुप्रेक्षा है । १३१ प्रश्न १७ - पूर्ण रत्नत्रय धर्म को कौन धारण करता है ? इस जीव ने नव ग्रैवेयकों तक जाकर अनन्त बार अहमिन्द्र पद प्राप्त किया किन्तु सम्यग्ज्ञान एक बार भी प्राप्त नहीं हुआ, ऐसे दुर्लभ सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति का बार-बार चिन्तन करना बोधिदुर्लभ अनुप्रेक्षा है। मिथ्यात्व से भिन्न सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र आदि जो भाव हैं वे धर्म कहलाते हैं। जब यह जीव इस धर्म को धारण करता है तभी मोक्ष को प्राप्त करता है, ऐसा विचार करना धर्म अनुप्रेक्षा है। उत्तर वैराग्य चिंतवन से समता रूपी सुख प्रगट होता है। प्रश्न १९ उत्तर रत्नत्रय को पूर्ण रूप से निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुनिराज ही धारण करते हैं। वैराग्य चितवन से क्या होता है ? सम्यक्त्व सहित बारह भावनाओं के चिंतन से क्या लाभ है ? सम्यक्त्व सहित बारह भावनाओं के चिंतन से पूर्व में बांधे हुए कर्मों की निर्जरा होती है। नए कर्मों का आना और बंधना रुकता है अर्थात् संवर होता है।
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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