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________________ छहढाला - पाँचवी ढाल १२८ ३- संसार भावना चढंगति दुःख जीव भरै है, परिवर्तन पंच करै है। सब विधि संसार असारा, या में सुख नाहिं लगारा ॥ ५॥ अन्वयार्थ :-(जीव)जीव (चहुँगति) चार गति में (दुःख) दुःख (भरै है) भोगता है और (परिवर्तन पंच) पाँच परावर्तन, पाँच प्रकार से परिभ्रमण (करै है) करता है। (संसार) संसार (सब विधि) सर्व प्रकार से (असारा) सार रहित है, (या में) इसमें (सुख) सुख (लगारा) लेश मात्र भी (नाहिं) नहीं है। ४ - एकत्व भावना शुभ अशुभ करम फल जेते, भोगै जिय एक हि ते ते। सुत दारा होय न सीरी, सब स्वारथ के हैं भीरी ॥ ६ ॥ अन्वयार्थ :- (जेते) जितने (शुभ-अशुभ करम फल) शुभ और अशुभ कर्म के फल हैं (ते ते) वे सब (जिय) यह जीव (एक हि) अकेला ही (भोगै) भोगता है (सुत) पुत्र (दारा) स्त्री (सीरी) साथ देने वाले (न होय) नहीं होते (सब) यह सब (स्वारथ के) अपने स्वार्थ के (भीरी) सगे (है) हैं। ५- अन्यत्व भावना जल पय ज्यों जिय तन मेला, पै भिन्न भिन्न नहिं भेला। तो प्रगट जुदे धन धामा, क्यों है इक मिलि सुत रामा ॥ ७ ॥ अन्वयार्थ :- (जिय तन) जीव और शरीर (जल पय ज्यों) पानी और दूध की भांति (मेला) मिले हुए हैं (पै) तथापि (भेला) एकरूप (नहिं) नहीं हैं, (भिन्न भिन्न) पृथक्-पृथक् हैं (तो) तो फिर (प्रगट) जो बाह्य में प्रगट रूप से (जुदे) पृथक् दिखाई देते हैं ऐसे (धन) लक्ष्मी, (धामा) मकान, (सुत) पुत्र और (रामा) स्त्री आदि (मिलि) मिलकर (इक) एक (क्यों) कैसे (है) हो सकते हैं? ६ - अशुचि भावना पल रुधिर राध मल थैली, कीकस वसादितै मैली। नव द्वार बहैं घिनकारी, अस देह करे किम यारी ॥ ८ ॥ अन्वयार्थ :- [जो] (पल) मांस (रुधिर) रक्त (राध) पीव और (मल) विष्टा की (थैली) थैली है, (कीकस) हड्डी, (वसादित) चरबी आदि से (मैली) अपवित्र है और जिसमें (घिनकारी) घृणा-ग्लानि उत्पन्न करने वाले (नव द्वार) नौ दरवाजे (बहे) बहते हैं (अस) ऐसे (देह) शरीर में (यारी) प्रेम-राग (किम) कैसे (करे) किया जा सकता है ? ७- आस्रव भावना जो योगन की चपलाई, ताते है आसव भाई। आसव दुखकार घनेरे, बुधिवंत तिन्हें निरवेरे ॥ ९ ॥ अन्वयार्थ :- (भाई) हे भव्य जीव ! (योगन की) योगों की (जो) जो (चपलाई) चंचलता है (ताते) उससे (आस्रव) आस्रव (है) होता है और (आसव) वह आस्रव (घनेरे) अत्यंत (दुःखकार) दुःखदायक है [इसलिये] (बुधिवंत) बुद्धिमान (तिन्हें) उसे (निरवेरे) दूर करें।
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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