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छहढाला - पाँचवीं ढाल
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पाँचवीं ढाल
(छन्द चाल या सखी छन्द) भावनाओं के चिंतवन का कारण, उसके अधिकारी और उसका फल
मुनि सकलव्रती बड़भागी भव भोगनतें वैरागी।
वैराग्य उपावन माई, चिन्तै अनुप्रेक्षा भाई ॥१॥ अन्वयार्थ :-(भाई) हे भव्य जीव ! (सकलव्रती) महाव्रतों के धारक (मुनि) भावलिंगी मुनिराज (बड़भागी) महान पुरुषार्थी हैं क्योंकि वे] (भव भोगनते) संसार और भोगों से (वैरागी) विरक्त होते हैं [और] (वैराग्य) वीतरागता को (उपावन माई) उत्पन्न करने के लिए माता के समान (अनुप्रेक्षा) बारह भावनाओं का (चिन्तै) चिंतवन करते हैं।
भावनाओं का फल और मोक्षसुख की प्राप्ति का समय इन चिन्तत सम सुख जागै, जिमि ज्वलन पवन के लागै।
जब ही जिय आतम जानै, तब ही जिय शिवसुख ठानै ॥ २॥ अन्वयार्थ :- (जिमि) जिस प्रकार (पवन के) वायु के (लागै) लगने से (ज्वलन) अग्नि (जागै) भभक उठती है, उसी प्रकार (इन) बारह भावनाओं का (चिन्तत) चितवन करने से (सम सुख) समतारूपी सुख (जागै) प्रगट होता है। (जब ही) जिस समय (जिय) जीव (आतम) आत्म स्वरूप को (जानै) जानता है (तब ही) तभी (जीव) जीव (शिवसुख) मोक्षसुख को (ठानै) प्राप्त करता है।
बारह भावनाओं का स्वरूप
१- अनित्य भावना जोबन गृह गोधन नारी, हय, गय, जन आज्ञाकारी ।
इन्द्रिय भोग छिन थाई, सुरधनु चपला चपलाई ॥ ३ ॥ अन्वयार्थ :- (जोबन) यौवन, (गृह) मकान, (गो) गाय-भैंस, (धन) लक्ष्मी, (नारी) स्त्री, (हय) घोड़ा, (गय) हाथी, (जन) कुटुम्ब, (आज्ञाकारी) नौकर-चाकर तथा (इन्द्रिय भोग) पाँच इंन्द्रियों के भोग - यह सब (सरधनु) इन्द्रधनुष तथा] (चपला) बिजली की (चपलाई) चंचलताक्षणिकता की भांति (छिन थाई) क्षणमात्र रहने वाले हैं।
२- अशरण भावना सुर असुर खगाधिप जेते, मृग ज्यों हरि, काल दले ते।
मणि मंत्र तंत्र बहु होई, मरते न बचावै कोई ॥ २ ॥ अन्वयार्थ :- (सुर असुर खगाधिप) देवों के इन्द्र, असुरों के इन्द्र और खगेन्द्र गरुड़, हंस (जेते) जो-जो हैं (ते) उन सबका (मृग हरि ज्यों) जिस प्रकार हिरन को सिंह मार डालता है उसी प्रकार (काल) मृत्यु (दले) नाश करता है। (मणि) चिन्तामणि आदि मणिरत्न, (मंत्र) बड़े-बड़े रक्षामंत्र, (तंत्र) तंत्र, (बहु होई) बहुत से होने पर भी (मरते) मरने वाले को (कोई) वे कोई (न बचावै) नहीं बचा सकते।