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________________ छहढाला - चौथी ढाल दुःश्रुति श्रवण अनर्थ दंडव्रत कहा जाता है] (और ह) तथा अन्य भी (अघहेतु) पाप के कारण (अनरथ दंड) अनर्थदंड हैं (तिन्हें) उन्हें भी (न कीजै) नहीं करना चाहिए। सामायिक, प्रोषध, भोगोपभोगपरिमाण और अतिथिसंविभागवत धर उर समताभाव,सदा सामायिक करिये । परव चतुष्टय माहि, पाप तज प्रोषध धरिये ॥ भोग और उपभोग, नियमकरि ममत निवारै । मुनि को भोजन देय फेर, निज करहि अहारै ॥ १४ ॥ अन्वयार्थ :- (उर) मन में (समताभाव) निर्विकल्पता अर्थात् शल्य के अभाव को (धर) धारण करके (सदा) हमेशा (सामायिक) सामायिक (करिये) करना [सो सामायिक शिक्षाव्रत है] (परव चतुष्टय माहि) चार पर्व के दिनों में (पाप) पापकार्यों को (तज) छोड़कर (प्रोषध) प्रोषधोपवास (धरिये) करना [सो प्रोषध उपवास शिक्षाव्रत है] (भोग) एक बार भोगा जा सके ऐसी वस्तुओं का तथा (उपभोग) बारम्बार भोगा जा सके ऐसी वस्तुओं का (नियमकरि) परिमाण करके मर्यादा रखकर (ममत) मोह (निवारै) छोड़ दे [सो भोग उपभोग परिमाणव्रत है] (मुनि को) वीतरागी मुनि को (भोजन) आहार (देय) देकर (फेर) फिर (निज करहि आहारै) स्वयं भोजन करे [सो अतिथि संविभागवत कहलाता है । निरतिचार श्रावक व्रत पालन करने का फल बारह व्रत के अतीचार, पन पन न लगावै । मरण समय संन्यास धारि तस दोष नशावै ॥ यों श्रावक व्रत पाल, स्वर्ग सोलह उपजावै । तहँतेंचय नरजन्म पाय, मुनि है शिव जावै ॥ १५ ॥ अन्वयार्थ :- जो जीव (बारह व्रत के) बारह व्रतों के (पन पन) पाँच-पाँच (अतिचार) अतिचारों को (न लगावै) नहीं लगाता, और (मरण समय) मृत्यु काल में (संन्यास) समाधि (धारि) धारण करके (तसु) उनके (दोष) दोषों को (नशा) दूर करता है वह (यों) इस प्रकार (श्रावक व्रत) श्रावक के व्रत (पाल) पालन करके (सोलह) सोलहवें (स्वर्ग) स्वर्ग तक (उपजावै) उत्पन्न होता है [और] (तहतें) वहाँ से (चय) देह छोड़कर (नर जन्म) मनुष्य पर्याय (पाय) प्राप्त करके (मुनि) मुनि (है) होकर (शिव) मोक्ष (जावै) जाता है। प्रश्नोत्तर प्रश्न १ - सम्यग्ज्ञान किसे कहते हैं? उत्तर - जो ज्ञान वस्तु के स्वरूप को न्यूनता रहित, अधिकता रहित तथा विपरीतता रहित जैसा का तैसा संदेह रहित जानता है उसे सम्यग्ज्ञान कहते हैं। प्रश्न २ - लक्षण, कारण एवं कार्य किसे कहते हैं ? उत्तर - लक्षण - मिली हुई वस्तुओं में से किसी एक वस्तु को अलग करने वाले चिह्न को लक्षण कहते हैं। कारण - कार्य की उत्पादक सामग्री को कारण कहते हैं। कार्य - उद्देश्य की पूर्ति को कार्य कहते हैं। प्रश्न ३ - प्रत्यक्ष ज्ञान किसे कहते हैं? उत्तर - इन्द्रिय, प्रकाश, उपदेश आदि की सहायता के बिना जो ज्ञान आत्मा से ही उत्पन्न होता है
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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