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छहढाला - चौथी ढाल
सम्यग्ज्ञान के भेद, परोक्ष और देशप्रत्यक्ष के लक्षण तास भेद दो हैं, परोक्ष परतछि तिन मांहीं । मति श्रुत दोय परोक्ष, अक्ष मनतै उपजाहीं ॥ अवधिज्ञान मनपर्जय दो हैं देश प्रतच्छा | द्रव्य क्षेत्र परिमाण लिये जानै जिय स्वच्छा || ३ || अन्वयार्थ :(तास) उस सम्यग्ज्ञान के (परोक्ष) परोक्ष और (परतछि) प्रत्यक्ष (दो) दो (भेद हैं) भेद हैं (तिन मांहीं) उनमें (मति श्रुत) मतिज्ञान और श्रुतज्ञान (दोय) यह दोनों (परोक्ष) परोक्षज्ञान हैं। [क्योंकि वे ] (अक्ष मनतैं ) इन्द्रियों तथा मन के निमित्त से (उपजाहीं) उत्पन्न होते हैं। (अवधिज्ञान) अवधिज्ञान और (मनपर्जय) मनः पर्यय ज्ञान (दो) यह दोनों ज्ञान (देश प्रतच्छा) देश प्रत्यक्ष ( हैं ) हैं [क्योंकि उन ज्ञानों से] (जिय) जीव (द्रव्य क्षेत्र परिमाण) द्रव्य और क्षेत्र की मर्यादा (लिये) लेकर (स्वच्छा) स्पष्ट (जानैं) जानता है ।
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सकल प्रत्यक्ष ज्ञान का लक्षण और ज्ञान की महिमा सकल द्रव्य के गुन अनंत, परजाय अनंता । जानें एकै काल प्रगट के वलि भगवन्ता ॥ ज्ञान समान न आन जगत में सुख कौ कारन | इहि परमामृत जन्म जरा मृत रोग निवारन ॥ ४ ॥
अन्वयार्थ :- • [ जिस ज्ञान से] (केवलि भगवन्ता) केवलज्ञानी भगवान (सकल द्रव्य के ) छहों द्रव्यों के (अनंत) अपरिमित (गुन) गुणों को [ और ] (अनन्ता) अनन्त (परजाय) पर्यायों को (एकै काल) एक साथ (प्रगट) स्पष्ट (जानैं) जानते हैं [उस ज्ञान को] (सकल) सकल प्रत्यक्ष अथवा केवल ज्ञान कहते हैं । (जगत में) इस जगत में (ज्ञान समान) सम्यग्ज्ञान जैसा (आन) दूसरा कोई पदार्थ (सुख कौ) सुख का ( न कारन) कारण नहीं है । ( इहि) यह सम्यग्ज्ञान ही (जन्म जरा मृत रोग निवारन) जन्म, जरा [वृद्धावस्था ] और मृत्युरुपी रोगों को दूर करने के लिये (परमामृत) उत्कृष्ट अमृत समान है।
ज्ञानी और अज्ञानी के कर्मनाश के विषय में अंतर कोटि जन्म तप तपैं, ज्ञान बिन कर्म झरें जे । ज्ञानी के छिन में त्रिगुप्ति तैं सहज टरै ते ॥ मुनिव्रत धार अनन्त बार ग्रीवक उपजायो ।
पैनिज आतमज्ञान बिना सुख लेश न पायौ ॥ ५ ॥
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अन्वयार्थ :- [अज्ञानी जीव को ] (ज्ञान बिन) सम्यग्ज्ञान के बिना (कोटि जन्म) करोड़ों जन्मों तक (तप तपैं) तप करने से (जे कर्म) जितने कर्म (झ) नाश होते हैं (ते) उतने कर्म (ज्ञानी के) सम्यग्ज्ञानी जीव के (त्रिगुप्ति तैं) मन वचन और काय की ओर की प्रवृत्ति को रोकने से [निर्विकल्प शुद्ध स्वभाव से] (छिन में) क्षणमात्र में (सहज) सरलता से (टरैं) नष्ट हो जाते हैं। [यह जीव] (मुनिव्रत ) मुनियों के महाव्रतों को (धार) धारण करके (अनन्त बार) अनन्तबार (ग्रीवक) नववें ग्रैवेयक तक (उपजायो) उत्पन्न हुआ (पै) परन्तु (निज आतम) अपने आत्मा के (ज्ञान बिना) ज्ञान बिना (लेश)