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छहढाला - चौथी ढाल
चौथी ढाल (रोला छन्द)
सम्यग्ज्ञान का लक्षण और उसका समय
सम्यक् श्रद्धा धारि पुनि, सेवहु सम्यग्ज्ञान |
स्व पर अर्थ बहु धर्मजुत, जो प्रगटावन भान ॥ १ ॥
अन्वयार्थ :- (सम्यक् श्रद्धा) सम्यग्दर्शन ( धारि) धारण करके (पुनि) फिर (सम्यग्ज्ञान) सम्यग्ज्ञान का (सेवहु) सेवन करो [ जो सम्यग्ज्ञान) (बहु धर्मजुत ) अनेक धर्मात्मक (स्व पर अर्थ ) अपना और दूसरे पदार्थों का (प्रकटावन) ज्ञान कराने में (भान) सूर्य समान है।
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सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान में अन्तर सम्यक् साथै ज्ञान होय, पै भिन्न अराधी । लक्षण श्रद्धा जान, दुहू में भेद अबाधौ ॥ सम्यक् कारण जान, ज्ञान कारज है सोई । युगपत् होते हू, प्रकाश दीपकते होई ॥ २ ॥
दर्शबज्ञान
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में अन्तर
अन्वयार्थ :- ( सम्यक् साथै ) सम्यग्दर्शन के साथ (ज्ञान) सम्यग्ज्ञान (होय) होता है (पै) तथापि [उन दोनों को ] ( भिन्न भिन्न (अराधौ) समझना चाहिये क्योंकि (लक्षण) उन दोनों के लक्षण [क्रमशः] (श्रद्धा) श्रद्धा करना और (जान) जानना है तथा (सम्यक् ) सम्यग्दर्शन (कारण) कारण है और (ज्ञान) सम्यग्ज्ञान (कारज) कार्य है। (सोई) यह भी (दुहू में) दोनों में (भेद) अन्तर (अबाधौ ) निर्बाध है । [जिस प्रकार ] ( युगपत्) एकसाथ (होते हू ) होने पर भी (प्रकाश) उजाला (दीपकतैं) दीपक की ज्योति से (होई) होता है उसी प्रकार ।