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________________ ११३ छहढाला - तीसरी ढाल (३) कर्म के भेद-प्रभेद - कर्म भावकर्म पूर्ववश मोहनीय आदि कर्मोदय का निमित्त पाकर आत्मा में उत्पन्न होने वाले राग व मोह रूपी विकारी भावों को भावकर्म कहते हैं। नोकर्म तीन शरीर (औदारिक, वैक्रियिक,आहारक) और छह पर्याप्ति के योग्य पुद्गल वर्गणाओं को नोकर्म कहते हैं। घातिया कर्म ज्ञान दर्शन सस वीर्य आदि गुणों के विकास न होने के निमित्त भूत कौ को घातिया कर्म कहते हैं। वेदन ज्ञानावरण दर्शनावरण मोहनीय अंतराय (४) द्रव्य - गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं। प्रत्येक द्रव्य अनंत वैभव संपन्न है। अनंत वैभव संपन्न होने से द्रव्यों को दूसरे के सहयोग की रंच मात्र भी अपेक्षा नहीं है अतः वे स्वाधीन, स्वतंत्र, पर-से पूर्ण निरपेक्ष, परिपूर्ण सत्ता वाले हैं। जाति अपेक्षा द्रव्य छह हैं - जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल । संख्या अपेक्षा - जीव अनंत हैं, पुद्गल अनंतानंत हैं। धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्य एक-एक और कालद्रव्य लोक प्रमाण असंख्यात हैं, इस प्रकार कुल अनंतानंत द्रव्य हैं। छह द्रव्यों का स्वरूप इस प्रकार है - १. जीव द्रव्य-जिसमें चेतना अर्थात् ज्ञान दर्शन रूप शक्ति हो उसे जीव द्रव्य कहते हैं। २. पुद्गल द्रव्य-जिस द्रव्य में स्पर्श, रस, गंध, वर्ण आदि गुण पाये जायें उसे पुद्गल द्रव्य कहते हैं । पुद्गल = पुद् + गल । पुद् = जुड़ना, गल = बिछुड़ना अर्थात् जिसका जुड़ना (मिलना) और बिछुड़ना (अलग होना) स्वभाव हो वह पुद्गल है, यह रूपी द्रव्य है। ३. धर्म द्रव्य - जो स्वयं गमन करते हुए जीव और पुद्गलों को गमन करने में सहकारी हो उसे धर्म द्रव्य कहते हैं। जैसे चलती हुई मछली को चलने में जल सहकारी है। यह गति हेतुत्व ४. अधर्म द्रव्य - जो स्वयं गति पूर्वक ठहरते हुए जीव और पुद्गलों को ठहरने में निमित्त होता है उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं। जैसे-चलते हुए पथिक को ठहरने में वृक्ष की छाया। यह स्थिति हेतुत्व है। ५. आकाश द्रव्य - जो जीवादि पांच द्रव्यों को स्थान देने में निमित्त होता है उसे आकाश द्रव्य कहते हैं । यह अवगाहन हेतुत्व है। ६. काल द्रव्य- अपनी-अपनी अवस्था रूप स्वयं परिणमित होने वाले जीवादि द्रव्यों के परिणमन में जो निमित्त होता है उसे काल द्रव्य कहते हैं। यह परिणमन हेतुत्व है। जैसेकुम्हार के चाक को घूमने में लोहे की कीली।
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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