________________
छहढाला - तीसरी ढाल
में स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, क्रियावती शक्ति आदि । धर्म द्रव्य में गति हेतुत्व । अधर्म द्रव्य में स्थिति हेतुत्व। आकाश द्रव्य में अवगाहन हेतुत्व । काल द्रव्य में परिणमन हेतुत्व इत्यादि विशेष
गुण हैं। (ग) "मोक्षमहल की परथम सीढ़ी' पंक्ति का भावार्थ लिखें। उत्तर - सम्यग्दर्शन मोक्ष महल की प्रथम सीढ़ी है, जिसके बिना ज्ञान और चारित्र सम्यकपने को
प्राप्त नहीं होते अर्थात् जब तक सम्यग्दर्शन न हो तब तक ज्ञान, मिथ्याज्ञान होता है और चारित्र मिथ्याचारित्र होता है। अतः प्रत्येक आत्मार्थी को मनुष्य जीवन रूपी अमूल्य निधि पाकर सर्वप्रथम सम्यग्दर्शन को प्राप्त करने का उपाय करना चाहिये ऐसा छहढाला की तीसरी
ढाल के सत्रहवें छंद का भावार्थ है। प्रश्न ३- दीर्घउत्तरीय प्रश्न -
(क) टिप्पणी लिखिये -
१.हेय-शेय-उपादेय-छोड़ने योग्य को हेय कहते हैं, जानने योग्य को ज्ञेय कहते हैं और ग्रहण करने योग्य को उपादेय कहते हैं। सात तत्त्वों की जानकारी के बिना हेय उपादेय करना उचित नहीं है। ज्ञेय तो सातों ही तत्त्व हैं। उनमें से जीव तत्त्व के आश्रय से संपूर्ण दुःखों का अंत होकर परिपूर्ण सुखमय दशा प्रगट होती है। अतः यह ज्ञेय के साथ-साथ एकमात्र आश्रय योग्य परम उपादेय भी है। अजीव तत्त्व स्वयं के लिये सुख दुःखमय नहीं होने से वह न स्वयं हेय है और न उपादेय अपितु मात्र ज्ञेय है। आस्रव, बंध, पुण्य, पाप स्वयं पूर्णतया दुःखमय होने के कारण सर्वथा हेय ही हैं। संवर और निर्जरा तत्त्व सुख का कारण होने से प्रगट करने की अपेक्षा एकदेश उपादेय हैं। मोक्ष तत्त्व पूर्ण सुखमय होने से प्रगट करने की अपेक्षा पूर्ण उपादेय है। इस प्रकार अजीव तत्त्व मात्र-ज्ञेय। आस्रव, बंध-हेय। संवर, निर्जरा- एकदेश उपादेय हैं। मोक्ष की शुद्धावस्था प्रगट करने की अपेक्षा सर्वदेश उपादेय है। जीव स्वभाव से
पूर्ण उपादेय है। (२) जीव के भेद-प्रभेद
जीव (आत्मा)
बहिरात्मा
अन्तरात्मा
जो शरीर व आत्मा को एक मानते हैं
जो शरीर से भिन्न आस्मा
को जानते हैं
कर्ममल से
में स्थित
सकल परमात्मा नि
संसारी अज्ञानी
जीव उत्तम अंतरात्मा मध्यम अंतरारमा जघन्य अंतरात्मा
तेरहवें चौदहवें गुणस्थानवर्ती
पूर्ण वीतरागी देश सकल संगमी अविरत सम्यग्दृष्टि सातवें से चारहवें पांचवे से छटवें चतुर्थ गुमस्थानवर्ती गुणस्थानवर्ती साधु गुणस्थानवर्ती