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छहढाला तीसरी ढाल
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(मूल) मूल है (इस बिन) इस सम्यग्दर्शन के बिना (करनी) समस्त क्रियाएँ (दुखकारी) दुःखदायक हैं। सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान और चारित्र का मिथ्यापना मोक्ष महल की परथम सीढ़ी, या बिन ज्ञान चरित्रा । सम्यक्ता न लहँ, सो दर्शन, धारो भव्य पवित्रा ||
"दौल" समझ सुन चेत सयाने, काल वृथा मत खोवै । यह नरभव फिर मिलन कठिन है, जो सम्यक् नहिं होवै ॥ १७ ॥ अन्वयार्थ :- [यह सम्यग्दर्शन] (मोक्ष महल की) मोक्ष रूपी महल की (परथम) प्रथम (सीढ़ी) सीढ़ी है (या बिन) इस सम्यग्दर्शन के बिना (ज्ञान चरित्रा) ज्ञान और चारित्र ( सम्यक्ता) सच्चाई (न लहै) प्राप्त नहीं करते इसलिये (भव्य) हे भव्य जीवो ! (सो) ऐसे (पवित्रा) पवित्र (दर्शन) सम्यग्दर्शन को (धारो) धारण करो (सयाने दौल) हे समझदार दौलतराम ! (सुन) सुन (समझ) समझ और (चेत) सावधान हो (काल) समय को (वृथा) व्यर्थ (मत खोवै) न गँवा (क्योंकि] (जो) यदि (सम्यक् ) सम्यग्दर्शन (नहिं होवै) नहीं हुआ तो (यह) यह (नरभव) मनुष्य पर्याय (फिर) पुन: (मिलन) मिलना (कठिन है) दुर्लभ है।
प्रश्नोत्तर
प्रश्न १
उत्तर
प्रश्न २
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प्रश्न ३
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प्रश्न ४
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प्रश्न ५
उत्तर प्रश्न ६
उत्तर
प्रश्न ७ उत्तर
प्रश्न ८ उत्तर
प्रश्न ९ उत्तर
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आत्मा का हित किसमें है?
आत्मा का हित सुख प्राप्त करने में है ।
सुख कैसा होता है ?
सुख आकुलता से रहित होता है।
आकुलता कहाँ पर नहीं है ?
आकुलता मोक्ष में नहीं है ।
सुख प्राप्त करने के लिये क्या करना चाहिये ?
सुख प्राप्त करने के लिये मोक्ष मार्ग में लगना चाहिये ।
मोक्ष का मार्ग क्या है ?
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की एकता ही मोक्ष का मार्ग है।
मोक्ष मार्ग का कथन कितने प्रकार से किया गया है ?
मोक्ष मार्ग का कथन दो प्रकार से किया गया है -
१. निश्चय मोक्ष मार्ग २. व्यवहार मोक्ष मार्ग।
निश्चय मोक्ष मार्ग किसे कहते हैं ?
अपने ज्ञायक स्वभाव के आश्रय पूर्वक अंतर में अभेद निश्चय रत्नत्रय (मोक्षमार्ग) को प्रगट
करने को निश्चय मोक्ष मार्ग कहते हैं ।
व्यवहार मोक्ष मार्ग किसे कहते हैं ?
जो निश्चय मोक्षमार्ग में कारणभूत है उसे व्यवहार मोक्ष मार्ग कहते हैं।
नय किसे कहते हैं ?
प्रमाण द्वारा जानी हुई वस्तु के एक अंश को जानने वाले ज्ञान को नय कहते हैं।