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छहढाला - तीसरी ढाल
१०८ को (जानै) जानता है। यदि जीव उनका] (मद) अभिमान (धार) रखता है तो (यही) ऊपर कहे हुए मद (वसु) आठ (दोष) दोष रूप होकर (समकित कौ) सम्यक्त्व को-सम्यग्दर्शन को (मल) दूषित (ठानै) करता है। छंद १४ उत्तरार्द्ध
छह अनायतन तथा तीन मूढ़ता दोष कु गुरु कु देव कु वृष सेवक की, नहि प्रशंस उचरै है।
जिनमुनि जिनश्रुत बिन कुगुरादिक, तिन्हें न नमन करै है ॥ १४॥ अन्वयार्थ :- [सम्यक्दृष्टि जीव] (कुगुरु कुदेव कुवृष सेवक की) कुगुरु कुदेव और कुधर्म की तथा उनके सेवक की (प्रशंस) प्रशंसा (नहिं उचरै है) नहीं करता है। (जिन) जिनेन्द्र देव (मुनि) वीतरागी मुनि [और] (जिन श्रुत) जिनवाणी (बिन) के अतिरिक्त [जो] (कुगुरादिक) कुगुरु कुदेव कुधर्म हैं (तिन्हें) उन्हें (नमन) नमस्कार (न कर है) नहीं करता है।
अव्रती सम्यक्दृष्टि की देवों द्वारा पूजा और गृहस्थपने में अप्रीति दोषरहित गुणसहित सुधी जे, सम्यक् दरश सजे हैं। चरितमोह वश लेश न संजम, पै सरनाथ जजै है ॥ गेही पै गृह में न रचैं ज्यों, जलते भिन्न कमल है।
नगर नारिको प्यार यथा, कादे में हेम अमल है ॥ १५ ॥ अन्वयार्थ :- (जे) जो (सुधी) बुद्धिमान पुरुष ऊपर कहे हुए] (दोषरहित) पच्चीस दोष रहित [तथा] (गुणसहित) नि:शंकितादि आठ गुणों सहित (सम्यकदरश) सम्यग्दर्शन से (सजै है) भूषित हैं [उन्हें] (चरितमोह वश) अप्रत्याख्यानावरणीय चारित्रमोहनीय कर्म के उदय वश (लेश) किंचित् भी (संजम) संयम (न) नहीं है (पै) तथापि (सुरनाथ) देवों के स्वामी इन्द्र [उनकी] (जजै है) पूजा करते हैं यद्यपि वे] (गेही) गृहस्थ हैं (पै) तथापि (गह में) घर में (न रचैं) नहीं राचते। (ज्यों) जिस प्रकार (कमल) कमल (जलते) जल से (भिन्न भिन्न (है) है [तथा] (यथा) जिस प्रकार (कादे में) कीचड़ में (हेम) स्वर्ण (अमल है) शुद्ध रहता है [उसी प्रकार उसका घर में] (नगर नारिको) वेश्या के (प्यार यथा) प्रेम की भाँति प्रेम होता है | सम्यक्त्व की महिमा, सम्यक्दृष्टि के अनुत्पत्ति स्थान तथा सर्वोत्तम सुख और सर्व धर्म का मूल
प्रथम नरक बिन षट् भू ज्योतिष वान भवन पंड नारी। थावर विकलत्रय पशु में नहि, उपजत सम्यक् धारी ॥ तीन लोक तिहुँकाल माँहिं नहिं, दर्शन सो सुखकारी ।
सकल धर्म को मूल यही, इस बिन करनी दुखकारी ॥ १६ ॥ अन्वयार्थ :- (सम्यधारी) सम्यक्दृष्टि जीव (प्रथम नरक बिन) पहले नरक के अतिरिक्त (षट् भू) शेष छह नरकों में, (ज्योतिष) ज्योतिषी देवों में, (वान) व्यंतर देवों में, (भवन) भवनवासी देवों में (पंड) नपुंसकों में, (नारी) स्त्रियों में, (थावर) पाँच स्थावरों में, (विकलत्रय) द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में तथा (पशु में) कर्मभूमि के पशुओं में (नहिं उपजत) उत्पन्न नहीं होते । (तीन लोक) तीन लोक (तिल्काल माँहिं) तीन काल में (दर्शन सो) सम्यग्दर्शन के समान (सुखकारी) सुखदायक (नहिं) अन्य कुछ नहीं है, (यही) यह सम्यग्दर्शन ही (सकल धर्म) समस्त धर्मों (को) का