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________________ छहढाला - दूसरी ढाल का फल भोगने में द्वेष करता है यह बन्ध तत्त्व का विपरीत श्रद्धान है। प्रश्न १७- संवर तत्त्व का विपरीत श्रद्धान क्या है ? उत्तर - वैराग्य और ज्ञान जो आत्मा के हितकारी कारण हैं उन्हें दुःखदायक मानना संवर तत्त्व का विपरीत श्रद्धान है। प्रश्न १८- निर्जरा तत्त्व का विपरीत श्रद्धान क्या है? उत्तर - आत्मा अपनी अनंत ज्ञानादि शक्तियों को भूलकर पराश्रय में सुख मानता है। शुभाशुभ इच्छा तथा पाँच इंद्रियों की चाह को नहीं रोकता है। यह निर्जरा तत्त्व का विपरीत श्रद्धान है। प्रश्न १९- मोक्ष तत्त्व का विपरीत श्रद्धान क्या है? उत्तर - परिपूर्ण निराकुलतामय वास्तविक सुखरूप अवस्था मोक्ष दशा है। उसे नहीं जानने के कारण पंचेन्द्रिय विषय भोग संबंधी सुख को ही सुख मानना तथा मोक्ष दशा में भी इसी जाति के अनंत सुख की कल्पना करना मोक्ष तत्त्व संबंधी भूल है। प्रश्न २०- कुधर्म किसे कहते हैं? उत्तर - जिन कार्यों को करने से राग-द्वेष उत्पन्न होते हैं, अपने और दूसरे के प्राणों को दुःख होता है तथा त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा होती है उन्हें धर्म कहते हैं। अभ्यास के प्रश्न प्रश्न १ - सत्य असत्य चुनिये - (क) मैं सुखी हूँ, मैं गरीब हूँ, ये धन सम्पत्ति मेरे हैं,ये स्त्री-पुत्रादि मेरे हैं, ऐसी मान्यता। (असत्य/सत्य) (ख) आत्मा जन्म और मरण करता है, शरीर का वियोग आत्मा का मरण है। (असत्य/सत्य) (ग) परद्रव्य जीव को लाभ-हानि नहीं पहुंचा सकते हैं। (असत्य/सत्य) (घ) अघातिया कर्म के फलानुसार पदार्थ की संयोग-वियोग रूप अवस्थायें होती हैं। तत्त्वदृष्टि से ऐसा निश्चय करके पुण्य कार्य करना चाहिये। (असत्य/सत्य) (ङ) स्वरूप में लीनता रूप पूर्ण निराकुल आत्मिक सुख की प्राप्ति अर्थात् जीव की संपूर्ण शुद्ध दशा मोक्ष का स्वरूप है। (असत्य/सत्य) प्रश्न २ - लघु उत्तरीय प्रश्न (क) अजीव द्रव्य कौन से हैं? उनसे कौन भिन्न है ? उत्तर-'पुद्गल नभधर्म अधर्म काल, इन न्यारी है जीव चाल' अर्थात् पुद्गल, आकाश, धर्म, अधर्म और काल-यह पाँच अजीव द्रव्य हैं। जीव त्रिकाल ज्ञानस्वरूप तथा पुद्गलादि द्रव्यों से पृथक् है। अगृहीत मिथ्याचारित्र किसे कहते हैं ? उत्तर -अनादि मिथ्यादर्शन और मिथ्याज्ञान के साथ पाँचों इन्द्रियों के जो विषय हैं,उनमें आचरण करना अगृहीत मिथ्याचारित्र है। (ग) आत्मा और जीव में क्या अंतर है? उत्तर-आत्मा और जीव में कोई अंतर नहीं है, दोनों पर्यायवाची शब्द हैं।
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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