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छहढाला - दूसरी ढाल प्रश्न ७ - प्रयोजन भूत जीवादि तत्त्व कौन-कौन से हैं और इनके लक्षण क्या हैं? उत्तर - प्रयोजनभूत तत्त्व सात हैं - १. जीव २. अजीव ३. आस्रव ४. बंध ५. संवर ६. निर्जरा
७. मोक्ष। जीव-जो चेतना लक्षण से युक्त है वह जीव कहलाता है। अजीव-जो चेतना लक्षण से रहित है वह अजीव कहलाता है। आसव-शुभ और अशुभ कर्मों के आने को आस्रव कहते हैं। बंध - आत्मा और कर्म के प्रदेशों का परस्पर एक क्षेत्रावगाह रूप मिल जाना बंध है। संवर - शुभ-अशुभ कर्मों का आना रुक जाना संवर है । निर्जरा - आत्मा से कर्मों का
एकदेश क्षय हो जाना निर्जरा है। मोक्ष - समस्त कर्मों का क्षय हो जाना मोक्ष है। प्रश्न ८- उपयोग किसे कहते हैं, उपयोग के कितने भेद हैं? उत्तर - उपयोग जीव का लक्षण है । चैतन्य गुण से संबंध रखने वाले परिणाम को उपयोग कहते हैं
अथवा जीव की ज्ञान दर्शन अर्थात् जानने देखने की शक्ति का व्यापार उपयोग है। उपयोग के
दो भेद हैं - १. दर्शनोपयोग २. ज्ञानोपयोग। प्रश्न ९ - दर्शनोपयोग किसे कहते हैं? उत्तर - जो सामान्य सत्ता मात्र को ग्रहण करता है उसे दर्शनोपयोग कहते हैं। यह निर्विकल्प और
निराकार होता है। प्रश्न १०- ज्ञानोपयोग किसे कहते हैं? उत्तर - चेतना का जो परिणमन पदार्थों का स्व-पर की भिन्नता पूर्वक अवभासन करता है उसे
ज्ञानोपयोग कहते हैं। यह सविकल्प और साकार होता है। प्रश्न ११- जीव तत्त्व के विषय में विपरीत श्रद्धान क्या है? उत्तर - शरीर में अपनी आत्मा की पहिचान करना, जीव को अजीव मानना जीव तत्त्व संबंधी विपरीत
श्रद्धान है। प्रश्न १२- अजीव तत्त्व का विपरीत श्रद्धान क्या है? उत्तर - शरीर आदि भिन्न पदार्थों में आत्मा की मान्यता करना, शरीरादि को अपना मानना अजीव
तत्त्व का विपरीत श्रद्धान है। प्रश्न १३- मिथ्यादृष्टि जीव अपना जन्म-मरण कैसे मानता है? उत्तर - मिथ्यादृष्टि जीव शरीर के उत्पन्न होने पर अपना जन्म एवं शरीर का विनाश हो जाने पर
अपना मरण मानता है। प्रश्न १४- आसव तत्त्व का विपरीत श्रद्धान क्या है? उत्तर - राग - द्वेष आदि भाव जो दुःख देने वाले हैं उनको सुख देने वाला मानना यह आस्रव तत्त्व का
विपरीत श्रद्धान है। प्रश्न १५- अजीव तत्त्व के भेद कौन से हैं ? उत्तर - पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये पाँच अजीव तत्त्व के भेद हैं। प्रश्न १६- बंध तत्त्व का विपरीत श्रद्धान क्या है ? उत्तर - यह जीव अपने आत्म स्वरूप को भूलकर शुभ कर्म का फल भोगने में राग तथा अशुभ कर्म