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________________ २८ छहढाला - दूसरी ढाल और सुनाना (सो) वह (कुबोध) मिथ्याज्ञान है; वह (बहु) बहुत (त्रास) दु:ख को (देन) देने वाला है। गृहीत मिथ्याचारित्र का लक्षण जो ख्याति लाभ पूजादि चाह, धरि करन विविध विध देहदाह । आतम अनात्म के ज्ञान हीन, जे जे करनी तन करन छीन ॥ १४ ॥ अन्वयार्थ :- (जो) जो (ख्याति) प्रसिद्धि (लाभ) लाभ तथा] (पूजादि) मान्यता और आदर सत्कार आदि की (चाह धरि) इच्छा करके (देहदाह) शरीर को कष्ट देने वाली (आतम अनात्म के) आत्मा और पर वस्तुओं के (ज्ञान हीन) भेदज्ञान से रहित (तन) शरीर को (छीन) क्षीण (करन) करने वाली (विविध विध) अनेक प्रकार की (जे जे करनी) जो-जो क्रियाएँ हैं वे सब (मिथ्याचारित्र) मिथ्याचारित्र हैं। मिथ्याचारित्र के त्याग का तथा आत्म हित में लगने का उपदेश ते सब मिथ्याचारित्र त्याग, अब आतम के हित पंथ लाग । जग जाल भ्रमण को देहु त्याग, अब दौलत ! निज आतम सुपाग ॥ १५॥ अन्वयार्थ :-(ते) उस (सब) समस्त (मिथ्याचारित्र) मिथ्याचारित्र को (त्याग) छोड़कर (अब) अब (आतम के ) आत्मा के (हित) कल्याण के (पंथ) मार्ग में (लाग) लग जाओ (जग जाल) संसार रूपी जाल में (भ्रमण को) भटकना (देहु त्याग) छोड़ दो (दौलत) हे दौलतराम ! (निज आतम) अपने आत्मा में (अब) अब (सुपाग) भलीभाँति लीन हो जाओ। प्रश्नोत्तर प्रश्न १ - संसार परिभ्रमण का मुख्य कारण क्या है ? उत्तर ___ - संसार परिभ्रमण का मुख्य कारण मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र है। प्रश्न २ - मिथ्यादर्शन किसे कहते हैं ? उत्तर - जीवादि पदार्थों का विपरीत श्रद्धान करना मिथ्यादर्शन कहलाता है। प्रश्न३ - मिथ्याज्ञान किसे कहते हैं ? उत्तर - जो ज्ञान वस्तु के स्वरूप को विपरीत जानता है उसे मिथ्याज्ञान कहते हैं। प्रश्न ४ - मिथ्यात्व के कितने भेद हैं? उत्तर - मिथ्यात्व के दो भेद हैं - अगृहीत मिथ्यात्व और गृहीत मिथ्यात्व । प्रश्न ५ - तत्त्व किसे कहते हैं? उत्तर - "तद्भावस्तत्त्वम्" जिस वस्तु का जो भाव है वह तत्त्व है। प्रश्न ६ - प्रयोजन भूत तत्त्व क्या है? उत्तर - जिन तत्त्वों के यथार्थ ज्ञान श्रद्धान के बिना कभी भी आकुलता नष्ट नहीं होती, उन्हें प्रयोजनभूत तत्त्व कहते हैं। प्र प्रकृष्ट रूप से, युज - युक्त होना, जिस कार्य में हम प्रकृष्ट रूप से जुड़ते हैं वह प्रयोजन है। भूत - होना, तत् = उस वस्तु का, त्व = मौलिक स्वभाव। अर्थात् वस्तु के जिस मौलिक स्वभाव के यथार्थ ज्ञान श्रद्धान से वास्तविक सुख उत्पन्न होता है उसे प्रयोजन भूत तत्त्व कहते हैं।
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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