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छहढाला- दूसरी ढाल
दूसरी ढा
पद्धरि छन्द १५ मात्रा
संसार (चतुर्गति) में परिभ्रमण का कारण
ऐसे मिथ्या दृग-ज्ञान- चर्णवश, भ्रमत भरत दुख जन्म-मर्ण ।
तातैं इनको तजिये सुजान, सुन तिन संक्षेप कहूँ बखान ॥ १ ॥
अन्वयार्थ :- [यह जीव ] ( मिथ्या दृग-ज्ञान-चर्णवश) मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र के वश होकर (ऐसे) इस प्रकार (जन्म-मर्ण) जन्म और मरण के (दुख) दुःखों को (भरत) भोगता हुआ [चारों गतियों में] (भ्रमत) भटकता फिरता है । ( तातै) इसलिये (इनको) इन तीनों को (सुजान) भलीभाँति जानकर (तजिये) छोड़ देना चाहिये । [इसलिये ] (तिन) इन तीनों का (संक्षेप) संक्षेप से (कहूँ बखान) वर्णन करता हूँ उसे (सुन) सुनो।
अगृहीत-मिथ्यादर्शन और जीवतत्त्व का लक्षण
जीवादि प्रयोजनभूत तत्त्व, सरधै तिनमांहि विपर्ययत्व |
चेतन को है उपयोग रूप, विनमूरत चिन्मूरत अनूप ॥ २ ॥
अन्वयार्थ :- (जीवादि) जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष (प्रयोजनभूत) प्रयोजनभूत (तत्त्व) तत्त्व हैं (तिनमांहि) उनमें (विपर्ययत्व) विपरीत (सरपैं) श्रद्धा करना [सो अगृहीत मिथ्यादर्शन है] (चेतन को) आत्मा का (रूप) स्वरूप (उपयोग) देखना - जानना अथवा दर्शन-ज्ञान (है) है [ और वह ] ( विनमूरत) अमूर्तिक (चिन्मूरत) चैतन्यमय [ तथा ] ( अनूप) उपमा रहित है। जीवतत्त्व के विषय में मिथ्यात्व (विपरीत श्रद्धा )
पुद्गल नभ धर्म अधर्म काल, इनतै न्यारी है जीव चाल |
ताकों न जान विपरीत मान, करि करै देह में निज पिछान ॥ ३ ॥
अन्वयार्थ :- (पुद्गल) पुद्गल (नभ) आकाश (धर्म) धर्म (अधर्म) अधर्म (काल) काल (इनतै) इनसे (जीव चाल) जीव का स्वभाव अथवा परिणाम (न्यारी) भिन्न (है) है; [तथापि मिथ्यादृष्टि जीव] (ताको) उस स्वभाव को ( न जान) नहीं जानता और (विपरीत) विपरीत (मान करि) मानकर (देह में शरीर में (निज) आत्मा की ( पिछान) पहिचान (करै) करता है ।
मिथ्यादृष्टि का शरीर तथा परवस्तुओं सम्बन्धी विचार
मैं सुखी दुखी मैं रंक राव, मेरे धन गृह गोधन प्रभाव ।
मेरे सुत तिय मैं सबल दीन, बेरूप सुभग मूरख प्रवीण ॥ ४ ॥ अन्वयार्थ :- [मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यादर्शन के कारण मानता है कि ] (मैं) मैं ( सुखी) सुखी (दुखी) दुःखी (रंक) निर्धन, (राव) राजा हूँ (मेरे) मेरे यहाँ (धन) रुपया-पैसा आदि (गृह) घर (गोधन) गाय, भैंस आदि (प्रभाव) बड़प्पन [ है और ] ( मेरे सुत) मेरी संतान तथा ( तिय) मेरी स्त्री है (मैं) मैं (सबल) बलवान (दीन) निर्बल (बेरूप) कुरूप (सुभग) सुन्दर (मूरख) मूर्ख और (प्रवीण) चतुर हूँ ।