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छहढाला - पहली ढाल ५. उन नरकों में नारकी जीव एक दूसरे के शरीर के तिल्ली के दाने के बराबर टुकड़े कर डालते हैं तथापि
उनका शरीर पारे की भाँति बिखरकर फिर जुड़ जाता है, आयु का अंत नहीं होता। ६. वहाँ असुर कुमार जाति के देव परस्पर बैर बताकर लड़वाते हैं। ७. नरकों में इतनी भीषण प्यास लगती है कि पूरे सागर का जल भी पी जाये तो भी तृषा शांत न हो तथापि
पीने के लिये जल की एक बूंद भी नहीं मिलती। ८. उन नरकों में इतनी तीव्र भूख लगती है कि तीन लोक का अनाज एक साथ खा जाये तो भी क्षुधा शांत
न हो तथापि वहाँ खाने के लिए एक कण भी नहीं मिलता। ९. नरकों में यह जीव ऐसे दुःख कम से कम दस हजार वर्ष और अधिक से अधिक तैंतीस सागरोपम काल तक (आयु के अनुसार) भोगता है।
- मनुष्य गति के दुःख - १. किसी विशेष पुण्योदय से यह जीव जब कभी मनुष्य पर्याय प्राप्त करता है तब नौ माह माँ के पेट में रहा __तब वहाँ शरीर को सिकोड़कर रहने से महान कष्ट सहता है। २. गर्भवास के दुःखों को सहन कर जब वहाँ से यह जीव निकलता है, तो इतनी अपार वेदना होती है कि
जिसका अंत नहीं, वह वेदना अवर्णनीय है। ३. मनुष्यगति में यह जीव बाल्यावस्था में विशेष ज्ञान प्राप्त नहीं कर सका। ४. युवावस्था में ज्ञान प्राप्त कर लिया, किंतु स्त्री के मोह में पड़कर विषयासक्त होकर यौवन नष्ट कर
दिया। ५. वृद्धावस्था में इन्द्रियाँ शिथिल हो गईं अथवा कोई रोग लग गया जिससे अधमरा जैसा पड़ा रहा।
भावार्थ यह है कि तीनों ही अवस्था में यह जीव इस दुर्लभ मनुष्य जन्म को पाकर भी आत्मस्वरूप से अनभिज्ञ रहते हुए महान दुःखी रहा।
-देवगति के दुःख - १. जब कभी यह जीव अकामनिर्जरा के प्रभाव से भवनवासी, व्यंतरवासी और ज्योतिषी देवों में उत्पन्न
हुआ। तब वहाँ अपने से अधिक ऋद्धि वाले देवों का वैभव देखकर महान दुःखी हुआ। २. आयु का अंत निकट आने पर मंदारमाला को मुरझाते देखकर तथा शरीर और आभूषणों की कांति क्षीण
होते देखकर अपना मृत्युसमय निकट जानकर, अवधिज्ञान से ऐसा जानकर कि - "हाय ! अब यह
भोग मुझे नहीं मिलेंगे।" ऐसा विचार कर बहुत विलाप करता है। ३. जब यह जीव वैमानिक देवों में उत्पन्न हुआ तो वहाँ भी सम्यग्दर्शन अर्थात् अतीन्द्रिय आनंद की
अनुभूति के बिना दुःख उठाये। ४. वहाँ से मरकर (सम्यक्त्व के बिना) पृथ्वीकायिक आदि स्थावरों के शरीर धारण कर पुनः तिर्यंचगति में जा पहुंचा। (ख) अंतर बताइए
१. त्रस और स्थावर २. संज्ञी और असंज्ञी ३. चारों गतियों के दुःख और दुःखों का कारण समझाइये। उत्तर - (उक्त प्रश्न का उत्तर स्वयं खोजें)