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छहढाला - पहली ढाल (ग) एकेन्द्रिय के कितने भेद होते हैं ? नाम लिखिए।
उत्तर - पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक ये पाँच
एकेन्द्रिय जीव हैं। (घ) नरकों की नदी और वृक्ष के नाम लिखिए।
उत्तर - नरकों की रक्त, मवाद, कीट से भरी नदी वैतरणी नदी है और तलवार की धार जैसे
तेज पत्तों वाले वृक्ष- सेमर वृक्ष हैं। (ङ) देवगति में वैमानिक देव क्यों दुःखी होते हैं ?
उत्तर - देवगति में वैमानिक देव सम्यग्दर्शन के बिना दुःखी होते हैं। प्रश्न ३- दीर्घउत्तरीय प्रश्न - (क) पहली ढाल का सारांश लिखिए।
उत्तर-संसार की कोई भी गति सुखदायक नहीं है। निश्चय सम्यग्दर्शन से ही पंच परावर्तनरूप संसार समाप्त होता है। अन्य किसी कारण से - दया, दानादि के शुभ राग से संसार नहीं छूटता । संयोग सुख-दुःख का कारण नहीं है, किन्तु मिथ्यात्व (पर के साथ एकत्व बुद्धि, कर्ता बुद्धि, शुभराग से धर्म होता है, शुभराग हितकर है- ऐसी मान्यता ही) दुःख का कारण है। सम्यग्दर्शन सुख का कारण है।
-तिर्यंच गति के दुःख१. यह जीव कभी पंचेन्द्रिय पशु हुआ, तो मन के बिना अत्यन्त अज्ञानी (मूर्ख) हुआ वहाँ मन रहित होने
से कुछ विचार करने की सामर्थ्य ही नहीं रही। २. कभी संज्ञी अर्थात् मन सहित भी हुआ तो अपने से निर्बल अनेक प्राणियों को मार-मार कर खाया। ३. कभी यह जीव स्वयं बलहीन हुआ तो अपने से बलवान प्राणियों द्वारा मारकर खाया गया। ४. पंचेन्द्रिय पशु छेदा जाना, भेदा जाना, भूख, प्यास, बोझा ढोना, ठंड, गर्मी के दुःखों से भी व्याकुलित ___ होता है। ५. इस जीव ने पंचेन्द्रिय पशु होकर मारा जाना, बंधना आदि अनेक दुःख सहे । जिनका वर्णन करोड़ों
जीभों से भी नहीं किया जा सकता और आयु के अंत में संक्लेशित परिणामों से (शरीर में एकत्वबुद्धि के कारण आर्तध्यान से) मरण कर घोर नरक गति में जा पहुंचा।
- नरक गति के दुःख तथा नरक गति का वातावरण - १. नरक की भूमि का स्पर्श मात्र करने से नारकियों को इतनी वेदना होती है कि हजारों बिच्छू एक साथ
डंक मारें तब भी उतनी वेदना न हो। वहाँ की मिट्टी का एक कण भी इस लोक में आ जाये तो उसकी
दुर्गन्ध से कोसों के संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव मृत्यु को प्राप्त हो जावें। २. वहाँ खून व मवाद की नदियाँ हैं जो छोटे-छोटे कीड़ों से भरी हुई हैं जो शरीर में दाह पैदा करती हैं।
वहाँ असह्य वेदना से दुःखी जीव जब इस वैतरणी नदी में कूदता है, तो उसकी वेदना और भी भयंकर
हो जाती है। ३. उन नरकों में तलवार के समान तीक्ष्ण पत्तों वाले सेमर के वृक्ष हैं, जो शरीर को चीर देते हैं। ४. मेरू पर्वत के समान लोहे का पिंड भी गल जाये ऐसी भीषण सर्दी, गर्मी है।