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________________ छहढाला - पहली ढाल ८८ लरक भूमि वैतरण [वैतरणी नामक ] नदी है जो ( कृमिकुलकलित ) छोटे-छोटे क्षुद्र कीड़ों से भरी है तथा ( देहदाहिनी) शरीर में दाह उत्पन्न करनेवाली है। नरकों के सेमर वृक्ष तथा सर्दी-गर्मी के दुःख सेमर तरु दलजुत असिपत्र, असि ज्यों' देह विदारे तत्र । मेरु समान लोह गलि जाय, ऐसी शीत उष्णता थाय ॥ ११ ॥ ਵੀਰ उष्ण अन्वयार्थ :- (तत्र ) उन नरकों में (असिपत्र ज्यों) तलवार की धार की भाँति तीक्ष्ण (दलजुत) पत्तों वाले (सेमर तरु) सेमल के वृक्ष [हैं, जो] (देह) शरीर को (असि ज्यों) तलवार की भाँति (विदार) चीर देते हैं, [ और ] (तत्र) वहाँ [उस नरक में] (ऐसी) ऐसी (शीत) ठण्ड [और ] (उष्णता) गर्मी (थाय ) होती है [कि] (मेरु समान) मेरु पर्वत के बराबर (लोह) लोहे का गोला भी (गलि) गल (जाय) सकता है। 6. नरकों में अन्य नारकी, असुरकुमार तथा प्यास का दुःख तिल-तिल करें देह के खण्ड, असुर भिड़ावै दुष्ट प्रचण्ड | सिन्धुनीर तैं प्यास न जाय, तो पण एक न बूंद लहाय ॥ १२ ॥ अन्वयार्थ :- [उन नरकों में नारकी जीव एक-दूसरे के] (देह के) शरीर के (तिल-तिल) तिल्ली
SR No.009715
Book TitleGyanodaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
PublisherTaran Taran Gyan Samsthan Chindwada
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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