________________
छहढाला पहली ढाल
८९
मारकाट
चिरप्यास'
के दाने बराबर (खण्ड) टुकड़े (करें) कर डालते हैं [ और ] (प्रचण्ड) अत्यन्त (दुष्ट) क्रूर (असुर) असुरकुमार जाति के देव [ एक- दूसरे के साथ ] (भिड़ावैं) लड़ाते हैं, [तथा इतनी] (प्यास) प्यास [लगती है कि] (सिन्धुनीर तैं) समुद्रभर पानी पीने से भी (न जाय) शांत न हो (तो पण) तथापि (एक बूँद ) एक बूँद भी (न लहाय) नहीं मिलती ।
नरकों की भूख, आयु और मनुष्यगति प्राप्ति का वर्णन
तीन लोक को नाज जु खाय, मिटै न भूख कणा न लहाय ।
ये दुःख बहु सागर लौं सहै, करम जोगतें नरगति लहै ॥ १३ ॥
अन्वयार्थ
--
[उन नरकों में इतनी भूख लगती है कि] (तीन लोक को) तीनों लोकों का (नाज) अनाज (जु खाय) खा जाये तथापि (भूख) क्षुधा ( न मिटै) शांत न हो [ परन्तु खाने के लिये] (कणा) एक दाना भी ( न लहाय) नहीं मिलता । (ये दुख) ऐसे दुःख (बहु सागर लौं) अनेक सागरोपमकाल तक (सहै) सहन करता है, (करम जोगते) किसी विशेष शुभकर्म के योग से (नर गति) मनुष्यगति (लहै) प्राप्त करता है ।
मनुष्यगति में गर्भनिवास तथा प्रसवकाल के दुःख
जननी उदर वस्यो नव मास, अंग सकुचतैं पायो त्रास ।
निकसत जे दुख पाये घोर, तिनको कहत न आवे ओर ॥ १४ ॥
अन्वयार्थ :- [मनुष्य गति में भी यह जीव] (नव मास) नौ महीने तक (जननी) माता के (उदर) पेट में (वस्यो) रहा; [तब वहाँ ] ( अंग) शरीर (सकुचतें) सिकोड़कर रहने से ( त्रास) दुःख (पायो ) पाया [और] (निकसत) निकलते समय (जे) जो (घोर) भयंकर (दुख पाये) दुःख पाये (तिनको) उन दुःखों को (कहत) कहने से (और) अन्त (न आवे) नहीं आ सकता।
मनुष्य गति में बाल, युवा और वृद्धावस्था के दुःख
बालपने में ज्ञान न लह्यो, तरुण समय तरुणी रत रह्यो ।
अर्धमृतकसम बूढ़ापनो, कैसे रूप लखै आपनो ॥ १५ ॥
अन्वयार्थ :- [मनुष्यगति में ] ( बालपने में) बचपन में (ज्ञान) ज्ञान ( न लह्यो) प्राप्त नहीं कर सका [और] (तरुण समय) युवावस्था में (तरुणी - रत) युवती स्त्री में लीन (रह्यो) रहा [और] (बूढ़ापनो) वृद्धावस्था में (अर्धमृतकसम) अधमरा जैसा [रहा, ऐसी दशा में ] ( कैसे) किस प्रकार [जीव] (आपनो ) अपना (रूप) स्वरूप (लखै) देखे - विचारे ।