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छहढाला - पहली ढाल
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MESSAGE
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जल
स्थायर पर्याय) जर यतस्पति
अन्वयार्थ :- [निगोद में यह जीव] (एक श्वास में) एक साँस में (अठदस बार) अठारह बार (जन्म्यो) जन्मा [और] (मर्यो) मरा [तथा] (दुःखभार) दुःखों का भार (भर्यो) सहन किया [और वहाँ से] (निकसि) निकलकर (भूमि) पृथ्वीकायिक जीव (जल) जलकायिक जीव (पावक) अग्निकायिक जीव (भयो) हुआ तथा] (पवन) वायुकायिक जीव [और] (प्रत्येक वनस्पति) प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीव (थयो) हुआ।
त्रस पर्याय की दुर्लभता और उसका दुःख दुर्लभ लहि ज्यों चिंतामणि, त्यो पर्याय लही त्रसतणी ।
लट पिपील अलि आदि शरीर, धर धर मर्यो सही बहु पीर ॥ ६ ॥ अन्वयार्थ :- (ज्यों) जिस प्रकार (चिंतामणि) चिन्तामणि रत्न (दुर्लभ) कठिनाई से (लहि) प्राप्त होता है (त्यों) उसी प्रकार (सतणी) त्रस की (पर्याय) पर्याय [भी बड़ी कठिनाई से] (लही) प्राप्त हुई। [वह भी] (लट) इल्ली (पिपील) चींटी (अलि) भँवरा (आदि) इत्यादि के (शरीर) शरीर (धर धर) बारम्बार धारण करके (मर्यो) मरण को प्राप्त हुआ और (बहु पीर) अत्यन्त पीड़ा (सही) सहन
की।
तिर्यंचगति में असंज्ञी तथा संज्ञी के दुःख कबहूँ पंचेन्द्रिय पशु भयो, मन बिन निपट अज्ञानी थयो । सिंहादिक सैनी है क्रूर, निबल पशु हति खाये भूर ॥ ७ ॥