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मचा रहा है। इसी श्रृंखला में प्रस्तुत अध्यात्म आराधना, देव गुरू TA शास्त्र पूजा का पांचवां संस्करण ४ हजार प्रतियों का प्रकाशन तारण तरण श्री संघ द्वारा किया गया है, जिसका विवरण इस प्रकार है
१००० प्रतियां, बाल ब्र. श्री सरला जी,बा.ब्र. उषा जी, बा. ब्र.नंद श्री (रचना) एवं ब्र. श्री मुन्नी बहिन जी की ओर से। १००० प्रतियां, ब्र. श्री भक्तावती जी (श्री सेठ प्रेमनारायणजी, राजीव कुमार, संजीव कुमार) बरेली की ओर से। १००० प्रतियां, श्री ब्र. सहजानन्द जी महाराज (बाबाजी),श्रीमतीश्यामबाई,संतोष कुमार, अशोक कुमार, मिथिलेश कुमार, पं. राजेश कुमार शास्त्री घोड़ाडोंगरी की ओर से। १००० प्रति का प्रकाशन स्व. श्री गयाप्रसादजी (भजनानंदजी) की स्मृति में - श्रीमती कृष्णाबाई, चि.रूपेश कुमार जैन बरेली की ओर से कराया गया
संत तारण तरण-एक आध्यात्मिक क्रांति
सोलहवीं शताब्दी का समय धर्म के नाम पर आडंबर, जड़वाद से पूर्ण हो रहा था, धर्म की चर्चा और क्रिया कांडमय आचरण तथा . अज्ञान जनित मान्यताएँधर्म के ठेकेदार जन मानस पर थोप रहे थे, ऐसे अज्ञान से परिपूर्ण अंधकार के बीच विक्रम सम्वत् १५०५ मिती अगहन सुदी सप्तमी को दैदीप्यमान प्रकाश पुंज के रूप में, ज्ञान का अनंत कोष संजोये हुए पूज्य गुरुदेव श्रीमजिन तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज का इस धरा पर जन्म हुआ। माता वीर श्री देवी, पिता श्री गढाशाह जी एवं जन-जन का मन प्रमुदित हो उठा,हृदयकमल खिल गया, इस भावना से कि इस महान चेतना के द्वारा जगत के जीवों का उद्धार होगा। बचपन से ही श्रीगुरू तारण स्वामी के विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न होने के लक्षण व्यक्त होने लगे थे, तदनुसार ११ वर्ष की बालवय में सम्यग्दर्शन,२१ वर्षकी किशोर अवस्था में ब्रह्मचर्य व्रत का संकल्प,३० वर्ष की युवा अवस्था में ब्रह्मचर्य प्रतिमा एवं ६० वर्ष की आयु में निग्रंथ दिगम्बर साधु पद की दीक्षा उनके उत्कृष्ट आत्म पुरूषार्थ का प्रतीक है। श्री गुरूदेव तारण स्वामी मंडलाचार्य पद से विभूषित थे। उनके संघ में ७ निग्रंथ मुनिराज, ३६ आर्यिका माता
जी,२३१ ब्रह्मचारिणी बहिनें,६०व्रती प्रतिमाधारी श्रावक एवं १८ क्रियाओं का पालन करने वाले श्रावक लाखों की संख्या में थे, जिसमें जैन-अजैन सभी जातियों के लोग अध्यात्म साधना के लिए समर्पित हो गये थे।
श्री गुरू तारण तरण मंडलाचार्य जी महाराज ने १४ ग्रंथों की रचना की, जिनमें आगम अध्यात्मसाधना परक अनुभूतियों की विशेषता है। ६६ वर्ष ५ माह १५ दिन की आयु में उन्होंने मिती जेठ वदी छठ विक्रम सम्वत् १५७२ में श्री निसई जी मल्हारगढ़ क्षेत्र पर समाधि पूर्वक इस पार्थिव शरीर का त्याग कर सर्वार्थ सिद्धि को प्राप्त हुए। श्रीगुरूदेव तारण स्वामीजी के ग्रंथों के आधार पर यह आध्यात्मिक पूजा बाल ब्र.श्री बसंत जी द्वारा संजोयी गई है, इसके स्वाध्याय से आपका जीवन मंगलमय बनें, ऐसी शुभ कामना है। घोडाडोंगरी
__ ब्र. सहजानन्द (बाबा जी) दिनांक १५.१.९९
इस कृति का आप व्यक्तिगत रूप से और सामूहिक रूप से प्रतिदिन स्वाध्याय, पाठ चिंतन-मनन कर अपने जीवन को मंगलमय बनायें, यही पवित्र भावना है। ब्र.ऊषा जैन
ब्र. आत्मानंद संयोजिका
संयोजक तारण तरण श्री संघ
तारण तरण श्री संघ दिनांक-५जून ९९