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________________ * ज्ञायक की स्थिति जिसको साक्षी होना है और सत्य को जानना है उसे समस्त विचारों को समान विचार समझना होगा, न कोई अच्छा हैमकोई बुरा है, क्योंकि जैसे ही हमने तय किया कि कुछ अच्छा है - कुछ बुरा है, तो फिर साक्षी नहीं रह जायेंगे। साक्षी होने के लिए जरूरी है कि हम निष्पक्ष हों,हमारी कोई धारणा न हो, हमारी कोई कल्पना न हो,हम कुछ भी आरोपित करना न चाहते हों। जब तक विचारों के प्रति शुभ-अशुभ के निर्णय की वृत्ति होती है, यह वृत्ति पित्त के मौन और शून्य होने में बाधा बन जाती है। वीतराग वर्शन के अतिरिक्त उनसे मुक्ति का कोई मार्ग नहीं है। चेतना हमेशा परिस्थितियों के बाहर है-जिस दिन इस पृथकता काबोध होगा, जिस दिन जीवन के बीच इस साक्षी भाव का उदय होगा कि मैं तो दूर खड़ा रह जाता हूँ। धारायें आती हैं और वह जाती है.हवाएं आती है और गुजर जाती हैं। धूप आती है, शीत आती है, वर्षा आती है, गर्मी आती है और मैं दूर खड़ा रह जाता हूँ मैं पृथक् अलग खड़ा रह जाता कुछ भी मुझे छूता नहीं, कुछ भी मेरे प्राणों का अतिक्रांत नहीं करता, कुछ भी मेरे भीतर बदलाइट नहीं करता । मैं तो वहीं रह जाता हूँ।चीजें आती हैं और बदल जाती हैं। जिस दिन यह एक क्रांतिकारी परिवर्तन अन्तर में प्रगट होगा, उसी क्षण से शायक की स्थिति हो जायेगी। शायक रहना ही जीवन का वास्तविक आनन्द है।साक्षी रहना ही जीवन जीने की कला है। आध्यात्मिक भजन भजन -१ गुरू बाबा को जिसने ध्याया, उसका ही उद्धार हुआ। आत्म ध्यान उर धारा जिसने, उसका बेड़ा पार हुआ | वेदी वाले की भक्ति करो, ध्यान चरणों में उनके धरो, जय हो जिन तारण-तरण....४ १. वीर श्री के दुलारे थे तारण - तरण । बाल पन में ही ली थी धरम की शरण॥ मोह को तज दिया, संयम धारण किया, मार्ग अपनाया वैराग्य का .........२ हो विरक्त जब दीक्षा धारी, जग में जय जयकार हुआ...२ आत्म ध्यान उर धारा जिसने...... २. वेदी वाले का जग में बड़ा नाम है। चांद सेमर निसई सूखा पुष्पधाम है। ज्ञानी गुरूवर मेरे, ध्यानी गुरूवर मेरे, गीत गाऊं मैं नित आपके .........२ धन्य हो गई भारत भूमि, गुरू का जब अवतार हुआ....२ आत्म ध्यान उर धारा जिसने...... ३. जग में फैले अहिंसा की शुभ देशना। सारी धरती कुटुम्ब है यही भावना ॥ ईर्ष्या करना नहीं, मन हो करूणामयी, ऐसी शिक्षा है गुरू तार की....२ बसंत हृदय में विश्व प्रेमधर, जो निर्मल अविकार हुआ। आत्म ध्यान उर धारा जिसने...... 70 69
SR No.009711
Book TitleAdhyatma Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherTaran Taran Sangh Bhopal
Publication Year1999
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size3 MB
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