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________________ भजन-२ सुनो त्रिलोकी नाथ कैसे हो रहे हो । निज को लख लो आज समय क्यों खो रहे हो। १. अनुभव के बिना रे भाई, यह समय लक्ष सम जाई। सद्गुरू तुमको समझाई, फिर भी मति क्यों भरमाई॥ देख क्या हालत है, कर्म बंध कर रहे, पाप ही बो रहे हो..... सुनो त्रिलोकीनाथ...... २. देखो तुम अरस अरूपी, यह जड़ पुद्गल है रूपी। तुम ज्ञानमयी शुद्धातम, हो परमानंद स्वरूपी॥ जरा निज को तो लखो, तज दो सब अज्ञान, दुखी क्यों हो रहे हो.....सुनो त्रिलोकी नाथ..... अब अपनी ओर निहारो,जग मेंन कोई तुम्हारो। नित भेदज्ञान उर धारो, पुरुषार्थ करो करारो॥ देख लो ज्ञायक हो, ज्ञाता दृष्टा रहो, कर्म क्यों ढो रहे हो...सुनो त्रिलोकी नाथ ..... ४. यहसमय नहीं फिर मिलना,चेतो अब कमलवत् खिलना। निशिवासर आतम ध्याओ, पर में न अब भरमाओ॥ चेत लो मौका है, वीतराग हो जाओ, उठो क्यों सो रहे हो... सुनो त्रिलोकी नाथ कैसे हो रहे हो। निज को लख लो आज समय क्यों खो रहे हो। भजन-३ रे मन ! मूरख जनम गमायो। कभी न आया सद्गुरू शरणा, ना तें प्रभु गुण गायो॥ १. यह संसार हाट बनिये की, सब कोई सौदे आयो । चातुर माल चौगुना कीना, मूरख मूल ठगायो । रेमन...... २. यह संसार फूल सेमर को, शोभा देख लुभायो । चाखन लाग्यो रूई उड़ गयी, सिर धुन-धुन पछतायो। रेमन...... भजन-४ सिद्ध स्वरूपी शुद्धात्मा, आज मेरे नैनों में झूले। नैनों में झूले, मेरे अंगना में झूले, सिद्ध स्वरूपी शुद्धात्मा, आज मेरे नैनों में झूले । १. शुद्ध प्रकाशं शुद्धात्म तत्वं । समस्त संकल्प विकल्प मुक्तं ॥ रत्नत्रय मयी परमात्मा, आज मेरे नैनों में झूले..... एक अखंड अभेद अविनाशी । चैतन्य ज्योति ज्ञायक स्वभावी ॥ ध्रुव तत्व भगवान आत्मा, आज मेरे नैनों में झूले.... ३. ज्ञानानंद स्वभावी है अलख निरंजन । अरहंत सर्वज्ञ भव भय भंजन ॥ ब्रह्मानंद परमात्मा, आज मेरे नैनों में झूले..... 72
SR No.009711
Book TitleAdhyatma Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherTaran Taran Sangh Bhopal
Publication Year1999
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size3 MB
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