SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५. ध्यान की अवस्था में शरीर अत्यन्त भारहीन मन सूक्ष्म और श्वास-प्रश्वास अलक्षित प्रतीत होती है। १६. साधक ध्यान का अभ्यास करने से दैनिक जीवनचर्या में मोह से विमुक्त हो जाता है और ज्योंज्यों वह मोह से विमुक्त होता है त्यों-त्यों उसे ध्यान में सफलता मिलती है। १७. ध्यान जनित आनन्द की अनुभूति होने पर व्यक्ति को भौतिक जगत के कुटिलता घृणा स्वार्थपरिग्रह-विषय-भोग आदि नीरस एवं निरर्थक प्रतीत होने लगते हैं। १८. भगवान महावीर कषाय मुक्ति पर बल डालते हैं। १९. योग का अर्थ है मन को जो हमारे विचारों और भावनाओं की हलचल का कारण है जीवन के मूल स्रोत आत्मतत्व (चेतनतत्व) से जोड़ना । - १००. हमारा आत्मस्थ होना, आत्मानन्द का सूक्ष्म अनुभव करना है । १०१. अस्त-व्यस्त ध्वस्त एवं भग्न मन को शांत सुखी एवं स्वस्थ करने के लिये ध्यान सर्वश्रेष्ठ औषधि है । १०२. सूक्ष्म जगत की अपेक्षा स्थूल जगत को अधिक महत्व देने से मोह उत्पन्न होता है। जो हमारी शान्ति और संतुलन को भंग कर देता है। १०३. मोह के कारण धन-पद-सत्ता- यश आदि की इच्छायें हमें सताने लगती हैं और इच्छित वस्तुओं का अभाव दुःख बन कर खटकने लगता है। १०४. इच्छा (काम) से मोह और मोह से इच्छा उद्दीप्त होते हैं। इच्छा से ही आशा, निराशा, चिन्ता, भय भी 57 उत्पन्न होते हैं। १०५. इच्छाओं और भावों को समझने पर ही उनका समाधान करना संभव है। १०६. बिन संतोष न काम नसाहीं । काम अछत सुख सपनेहुं नाहीं ॥ १०७. ध्यान के अभ्यास से मनुष्य को मानसिक तनाव से मुक्ति मिल जाती है। १०८. अनादिकालीन संसार परिभ्रमण जन्म-मरण का कारण, अपना अज्ञान (स्वरूप का विस्मरण) और मोह है। १०१. यह शरीर ही मैं हूं, यह शरीरादि मेरे हैं, मैं इन सबका कर्ता हूं, यह मिथ्या मान्यता ही संसार परिभ्रमण का कारण है। ११०. वर्तमान मनुष्य भव में हमें तीन शुभ योग मिले हैं - बुद्धि, स्वस्थ शरीर और पुण्य का उदय तथा इनका सदुपयोग दुरूपयोग करने की पूर्ण स्वतंत्रता है। १११. बुद्धि का दुरूपयोग करने के कारण वर्तमान जीवन को अशांत दुःखमय बनाये हैं और भविष्य के लिये अशुभ कर्मबन्ध करके दुर्गति के पात्र बन रहे हैं। ११२. पर का विचार करना ही बुद्धि का दुरूपयोग है, इससे ही भय चिन्ता आकुलता घबराहट होती है । - ११३. बुद्धि का सदुपयोग करके हम वर्तमान जीवन सुख शांति आनंदमय बना सकते हैं और भविष्य में सद्गति मुक्ति पा सकते हैं। ११४. ४. बुद्धि का सदुपयोग भेद ज्ञान तत्व निर्णय करने में है । 58
SR No.009711
Book TitleAdhyatma Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherTaran Taran Sangh Bhopal
Publication Year1999
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy