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________________ और विश्वास के साथ आगे बढ़े चलो, जीवन एक। सुख का सिंधु हो जायेगा। ७८. आध्यात्मिकता मनुष्य को पलायन नहीं सिखाती । है, बल्कि उसके अन्तर जगत को सुव्यवस्थित कर उसे कर्म की ओर प्रवृत्त करती है तथा उसे समभाव जनित स्थायी सुख एवं शान्ति प्रदान करती है। ७१. अध्यात्म एक विज्ञान है, एक कला है, एक दर्शन है, अध्यात्म मानव के जीवन में, जीने की कला के मूल रहस्य को उद्घाटित कर देता है। ८०. सोलहवीं शताब्दी के अध्यात्मवादी संत श्री जिन तारण स्वामी ने यथार्थ मार्ग बताया हैएतत् सम्यक्त्व पूजस्य, पूजा पूज्य समाचरेत् । मुक्ति श्रियं पथं शुद्धं, व्यवहार निश्चय शाश्वतं ॥ इस प्रकार सच्ची पूजा का यह स्वरूप है कि पूज्य के समान आचरण होना ही सच्ची पूजा है। मोक्ष लक्ष्मी को पाने का शुद्ध मार्ग निश्चय व्यवहार से शाश्वत होता है। ८१. कथनी करनी भिन्न जहां, धर्म नहीं पाखंड वहां । ८२. अध्यात्म साधना का मार्ग - स्वाध्याय, सत्संग, संयम, ज्ञान, ध्यान है। ८३. जाग्रत अवस्था में ध्यान अन्तरंग का एक गहन सुख होता है, जो अनिर्वचनीय है। ८४. ध्यान कोई तन्त्र - मन्त्र नहीं है। ध्यान एक साधना है जिसके द्वारा हम अपने भीतर आत्मानन्द उपजाते हैं। ८५. मौन, ध्यान का प्रथम चरण है । मौन का अर्थ-बाह्य संचरण छोड़कर अन्त: संचरण करना । मौन का अर्थ है- संयम के द्वारा धीर-धीर इन्द्रियों तथा मन के व्यापार का शमन होना (दमन नहीं)। ८६. हमारे भीतर गहरे स्तर पर आनन्द स्वरूप आत्मा है जो हमारा निज स्वरूप है। अभी मन उसकी ओर उन्मुख न होकर बाहर भटक रहा है और सुखाभास को सुख समझ रहा है। ८७. मौन की सफलता होने पर ही ध्यान की सफलता होती है। ८८. मौन व्रत धारण करने से राग द्वेषादि शीघ्र नष्ट हो जाते हैं - मौन से गुण राशि प्राप्त होती है - मौन से ज्ञान प्राप्त होता है - मौन से उत्तम श्रुतज्ञान प्राप्त होता है - मौन से केवलज्ञान प्रकट होता है। ८१. साधक मौन ग्रहण के समय वर्तमान घटनाओं में रूचि न ले, कल की चिन्ता न करे - और भविष्य की योजनायें न बनाये। १०. यथा संभव मौन के समय शान्तचित्त होकर ध्यान और मंत्र जप ही करना चाहिये। ११. मौन एवं अन्तर्मुखी होने पर ही तत्व दर्शन होता है। १२. ध्यान द्वारा गहरे स्तर पर चेतना की निन्थ निर्मल अखण्ड सत्ता का दर्शन होता है। १३. ध्यान द्वारा हम आत्म साक्षात्कार करते हैं, आत्म ज्योति का दर्शन करते हैं अथवा यों कहिये कि आत्म तत्व - परमात्म तत्व में लय हो जाता है। १४. ध्यान की चरम अवस्था में साधक आनन्द महोदधि में निमग्न हो जाता है। 56 55
SR No.009711
Book TitleAdhyatma Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherTaran Taran Sangh Bhopal
Publication Year1999
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size3 MB
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