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ॐ जीवन जीने के सूत्र १. धर्म - कर्म में कोई किसी का साथी नहीं है।
जो जैसा करेगा,उसका फल उसी को भोगना पड़ेगा।
जीव अकेला आया है और अकेला जायेगा। ४. संसार की कोई वस्तु (घर-शरीर-परिवार) न साथ
लाया है, न साथ ले जायेगा। ५. जो जन्मा है वह अवश्य मरेगा। ६. एक दिन हमें भी मरना है इसका अवश्य ध्यान रखो।
राजा राणा छत्रपति, हाथिन के असवार ।
मरना सबको एक दिन, अपनी-अपनी बार ॥ ८. दल-बल देवी देवता, मात-पिता परिवार ।
मरती बिरिया जीव को, कोई न राखनहार ॥ १. आप अकेला अवतरे, मरे अकेला होय ।
यूं कबहूं या जीव को, साथी सगा न कोय ॥ १० प्रति समय सुमरण करो, वृथा समय मत खोओ।
निज स्वभाव में लीन हो, खुद परमातम होओ ।। ११. यह मानुष पर्याय, सुकुल सुनिवो जिनवाणी।
इह विधि गये न मिले, सुमणि ज्यों उदधि समानी॥ १२. बड़े भाग्य मानुष तन पावा।
सुर दुर्लभ सद ग्रन्थन गावा॥ १३. सो नर निन्दक मंद मति, आतम हन गति जाय।
जो न तरइ भव सागर, नर समाज अस पाय ।। १४. काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब ।। १५. अच्छे कामों में देर मत करो "शुभस्य शीघ्रम्"।
१६. बुरे कामों में जल्दी मत करो, ठहरो बचो डरो। १७. पाप से दुर्गति-पुण्य से सद्गति और धर्म से मुक्ति
होती है। १८. हाथ का दिया साथ जाता है, बाकी सब यहीं रह
जाता है। ११. धन की तो गति तीन हैं, दान भोग अरू नाश ।
दान भोग जो न करे, निश्चय होय विनाश ।। २०. पाप-बेईमानी से कमाया धन बुरे कामों में जाता है। २१. आनन्द से जीने के लिये अपना आत्मबल जगाओ,
निर्भय बनो। २२. सुखी रहने के लिये - समता शान्ति आवश्यक है। २३. सर्वप्रिय बनने के लिये-सबसे मैत्री,प्रमोद भाव रखो। २४. निराकुलता में रहने के लिये - तत्व निर्णय करो। २५. सम्मान चाहते हो तो, हमेशा दूसरों का सम्मान करो। २६. बड़े बनना चाहते हो तो दया दान परोपकार करो। २७. धन चाहते हो तो संयमित जीवन बनाओ, प्रतिदिन
मन्दिर जाओ, दान करो, शुभ भाव रखो और सत्यता
ईमानदारी से व्यापार करो। २८. आकुल व्याकुल चिन्तित भयभीत होना ही मरना है। २१. विभाव परिणमन, संकल्प-विकल्प ही भाव
मरण है। ३०. पर का विचार, पर की चिन्ता, मन की कल्पना,
विकल्प,यह सब आकुलता अशान्ति और दुःख के
कारण हैं। ३१. तात तीन अति प्रबल खल, क्रोध, मोह और लोभ ।
इनके चित्त में उपजते, होत जीव को क्षोभ ।।
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