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________________ ३२. लोभी अपने पुण्य का फल नहीं भोगता, आशा तृष्णा चाह में ही मरता रहता है, नकटा बेशरम होता है । ३३. मोही को अपने हिताहित का कोई विचार नहीं रहता, अन्धा पागल बेहोश, भयभीत, चिन्तित रहता है। ३४. जो मिला है उसका सदुपयोग करने वाला विवेकवान है। दुरूपयोग करने वाला अज्ञानी मूर्ख है। ३५. सच्चे देव गुरू धर्म की श्रद्धा, सत्संग स्वाध्याय सामायिक करना, सदाचारी जीवन होना, सम्यग्दर्शन की पात्रता है। - ३६. भेदज्ञान के अभाव में ही भय-चिन्ता घबराहट होती है । ३७. जिम्मेदारी, रिश्तेदारी दुनियांदारी जिसके गले जितनी बंधी है, वह उतना चिन्तित परेशान रहेगा । ३८. चाह से चिन्ता, मोह से भय और दुःख, राग से संकल्प-विकल्प होते हैं। ३१. तीन लोक के नाथ को नहीं स्वयं का ज्ञान । 1 भीख मांगता फिर रहा, बना हुआ हैवान ॥ ४०. ज्ञानी सम्यग्दृष्टि मुक्ति चाहता है और वह उसके सत्पुरुषार्थ से मिलती है। अज्ञानी मिथ्यादृष्टि मन की तृप्ति चाहता है और वह कभी होती नहीं है। ४१. पाप के उदय में जीव धन के पीछे मरता है और पुण्य के उदय में विषयों में रमता है। ४२. अध्यात्म का अर्थ ४३. अध्यात्म का फल - - है अपने स्वरूप को जानना । जीवन में सुख शान्ति होना 51 - ४४. ज्यों-ज्यों भौतिक प्रगति हो रही है, मानव की मानवता विलुप्त होती जा रही है। ४५. धर्म के नाम पर परस्पर घृणा का प्रचार करने वाले तथा युद्ध भड़काने वाले धर्म के तत्व एवं उद्देश्य को नहीं समझते। ४६. सन्त किसी एक धर्म के खूंटे से नहीं बंधते हैं, सत्य का सत्कार करते हैं, वह चाहे जहां भी प्राप्त हो । ४७. निराशा को भगाओ, आशा को जगाओ, आज और अभी जगाओ जीवन का यही सन्देश है। - ४८. जो जीवन में रूचि नहीं लेता है, उसे जीने का अधिकार नहीं है। ४९. जहां आत्म श्रद्धान है तथा कर्मों का विश्वास है, वहां चिन्ता और भय नहीं रह सकते। ५०. परमात्मा पर श्रद्धा और कर्मों का विश्वास करने वाले को कभी भय चिन्ता नहीं हो सकते। ५१. प्रसन्न- -हंसमुख और मस्त स्वभाव के बिना, आप चिड़चिड़े क्रोधी, दुःखी और रक्तचाप आदि रोगों के शिकार हो जायेंगे। ५२. व्यर्थ ही जिम्मेदारी बड़प्पन का बोझ लादकर, हम खिल-खिलाकर हंसना भूल गये गमगीन रहने लगे हैं। ५३. मनुष्य का भविष्य हाथ की रेखाओं और ग्रहों द्वारा कदापि बांधा नहीं जा सकता। ५४. मनुष्य की इच्छा शक्ति और पुरुषार्थ ही मनुष्य का भविष्य बनाती है। 52
SR No.009711
Book TitleAdhyatma Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherTaran Taran Sangh Bhopal
Publication Year1999
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size3 MB
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