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________________ सावधान परमात्मा की खोज करते,जगत के सब लोग बाहर। देख लें इक क्षण स्वयं को, तब तो यह हो जाए जाहर ॥ मुझको मेरी खोज थी, पर भ्रमित था, जिनवाणी मां। सद्गुरू तारण तरण कहते, तू स्वयं परमात्मा ||७|| मिलता न वह चैत्यालयों, गिरजाघरों या मंदिरों में। गुरुद्वारा शिवालय व, मस्जिदों में न घरों में ॥ वह प्रभु बैठा है हृदय में, एक क्षण निज में समा। सद्गुरू तारण तरण कहते, तू स्वयं परमात्मा ।।८।। उदधि पर्वत कंदराओं में, जो प्रभु को ढूंढते । पर एक क्षण भी निजातम, अनुभवन में न डूबते ॥ भूले हुए भगवान वे सब, बने हैं बहिरात्मा । सद्गुरू तारण तरण कहते, तू स्वयं परमात्मा ॥९॥ बाहर भटकना छोड़ दे, दृष्टि हटा जग से स्वयं । परिवार से तन मन से हटकर, तोड़ दे बुद्धि का भ्रम॥ चित अहं से भी दूर जो है, वही है शुद्धात्मा । सद्गुरू तारण तरण कहते, तू स्वयं परमात्मा ॥१०॥ चैतन्य अनुभव का विषय, वह ज्ञान का घन पिण्ड है। आनन्द अमृत से भरा, ध्रुव धाम एक अखंड है। पर वस्तु के संयोग से, नित भिन्न रहता आत्मा। सद्गुरू तारण तरण कहते, तू स्वयं परमात्मा ॥११॥ निज आत्मा में ही छिपा, परमात्मा आनन्द मय । इस सत्य का श्रद्धान, अनुभव करो होंगे कर्म क्षय ॥ अविकार ब्रह्मानन्द मय, ध्रुव धाम निज शुद्धात्मा। सद्गुरू तारण तरण कहते, तू स्वयं परमात्मा ॥१२॥ यथार्थ जीवन अर्थात् साक्षी भाव यदि कोई व्यक्ति कामिनी को या कंचन को बुरा मानकर उनसे भागने लगे तो वह पायेगा कि चौबीसों घंटे वे ही विचार उसे घेरे हुए हैं। सोते जागते वह उनमें ही डूबा रहेगा और जितना वह स्वयं को उनमें डूबा हुआ पायेगा - उतना ही भयभीत होगा। जिस विचार से आप लड़ते हैं, वही विचार आपका आमंत्रण स्वीकार कर लेता है। जिससे आप लड़ते हैं, डरते हैं, मन उन्हीं विचारों को बारम्बार सामने लाता है। इसलिए विचार से, मन से, न तो डरना है, न उसे डराना है, न उसे पकड़ना है, न उसे धक्का देना है। उसे तो मात्र देखना है । निश्चय ही इसमें बड़ी सजगता दढ़ता और हिम्मत की जरूरत है क्योंकि बुरा भी विचार आयेगा और आदत बस मन होगा कि उसे पकड़ लें। इस मन को यह जो पकड़ने और धक्का देने की प्रवृत्ति है, यह सहज आदत है । बोधपूर्वक स्मृतिपूर्वक अगर कोई उसे देखेगा साक्षी रहेगा तो यह वृत्ति धीर-धीर शिथिल हो जायेगी और विचार को, मन को, देखने में समर्थ हो जायेगा और जो व्यक्ति विचार को देखने में समर्थ हो जायेगा, वह वस्तुतः विचार से मुक्त होने में भी समर्थ हो जाता है। 47
SR No.009711
Book TitleAdhyatma Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherTaran Taran Sangh Bhopal
Publication Year1999
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size3 MB
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