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________________ ज्ञान की शक्ति महान ज्ञान की शक्ति महान जगत में, ज्ञान की शक्ति महान । आत्म ज्ञान ही ज्ञान कहता, सुख शांति मुक्ति का दाता । शेष सभी अज्ञान, जगत में .............. भेद ज्ञान, तत्व निर्णय होता, सारा भ्रम अज्ञान है खोता । हो सम्यक् दर्शन ज्ञान, जगत में ........ वस्तु स्वरूप सामने दिखता, माया मोह वहां न टिकता। होता दृढ़ निश्चय श्रद्धान, जगत में ....... द्रव्य दृष्टि सब राग तोड़ती, शुद्ध दृष्टि सम भाव जोड़ती। मति श्रुत हों सुज्ञान, जगत में ............ अवधिज्ञान, मनः पर्यय जगता, घातिया कर्म स्वयं ही भगता । प्रगटे केवलज्ञान, जगत में ............. वीतराग सर्वज्ञ हितंकर, हो अरिहंत प्रभु तीर्थंकर । कहलाते भगवान, जगत में ............. शेष अघातिया कर्म क्षय होते, आतम सिद्ध स्वरूप में सोते । पाते पद निर्वाण, जगत में ......... ज्ञानानंद स्वभावी आतम, आतम शुद्धातम परमातम। बनता खुद भगवान, जगत में .... अरिहंत सिद्ध परमात्मा प्रमाण के लिये हैं, पूजा के लिये नहीं। उन जैसे बनने के लिये स्वयं का पुरुषार्थ, भेद ज्ञान तत्व निर्णय ही कार्यकारी प्रयोजनीय है। 45 ३. आत्मा ही परमात्मा चिद्रूप की पहिचान तुम, सत्यार्थ दृष्टि से करो । जो रूप है अपना त्रिकाली, उसे अब चित में धरो ॥ चैतन्यता से है विभूषित, सदा ही निज आत्मा । सद्गुरू तारण तरण कहते, तू स्वयं परमात्मा ॥१॥ होवे न कोई विकल्प जिस क्षण निर्विकल्प दशा रहे। तब तू स्वयं परमात्मा, जब ज्ञान मय अनुभव गहे ॥ हे आत्मन् ! स्वीकार करले, शुद्ध हूं शुद्धात्मा । सद्गुरू तारण तरण कहते, तू स्वयं परमात्मा ॥२॥ अरिहंत को तू देख ले, और सिद्ध को भी देख ले । अब दृष्टि अपनी ओर कर तू, स्वयं को भी लेख ले ॥ है शुद्ध द्रव्य स्वभाव से, उन सदृश ही मुक्ति रमा । सद्गुरू तारण तरण कहते, तू स्वयं परमात्मा ॥३॥ मैं शुद्ध हूँ परमात्मा, यह लक्ष्य रख निज रूप का । तब बनेगा तू वीतरागी, अनुभवी चिद्रूप का । बस एक निज ध्रुव धाम पर दृष्टि को दृढ़ता से जमा। सद्गुरू तारण तरण कहते, तू स्वयं परमात्मा ॥४॥ अरिहंत सिद्धों के तरफ का लक्ष्य भी अब छोड़ दे। एकाग्र हो निज रूप में उपयोग अपना जोड़ दे ॥ फिर देख यह दर्शन अनंता, ज्ञान वीरज सुख क्षमा । सद्गुरू तारण तरण कहते, तू स्वयं परमात्मा ॥५॥ जब तक रहेगा लक्ष्य पर का, राग छूटेगा नहीं । बिन राग के छूटे जगत का, बंध टूटेगा नहीं ॥ चल हो स्वयं में लीन अब, दुःखमय करम धन मत कमा। सद्गुरू तारण तरण कहते, तू स्वयं परमात्मा ॥६॥ 46
SR No.009711
Book TitleAdhyatma Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherTaran Taran Sangh Bhopal
Publication Year1999
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size3 MB
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