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________________ २.धन्य अन्तरात्मा इस देह से मैं सदा न्यारा, शुद्ध निर्मल आत्मा । परिपूर्ण हूं निज में स्वयं, विज्ञान घन परमात्मा ॥ रागादि से हो दूर जिसने, शुद्धता निज की लखी। वह अन्तरात्मा धन्य है, चैतन्य का जो पारखी ॥१॥ मैं मन नहीं, मैं तन नहीं, जड़ वचन भी मैं हूं नहीं। त्रय योग से सब कर्म से, जो भिन्न चेतन, मैं वही॥ चिन्मात्र निज धुव-धाम पर, दृष्टि सदा जिसने रखी। वह अन्तरात्मा धन्य है, चैतन्य का जो पारखी ॥२॥ है अन्तरात्मा जौहरी जो, ज्ञान वैभव को सम्हाले। पाषाण तन के बीच से, चैतन्य हीरा को निकाले ॥ स्वानुभव में आ रही, महिमा समय के सार की। वह अन्तरात्मा धन्य है, चैतन्य का जो पारखी ॥३॥ पण्डित वही ज्ञानी वही, जो हुआ शुद्ध विवेक से । छूटी समस्त अनेकता, नाता हुआ है एक से ।। निजात्मा आनंद अमृत मयी, अनुभव में चखी। वह अन्तरात्मा धन्य है, चैतन्य का जो पारखी ॥४॥ अरिहंत सिद्धों सम निजातम, देह में ही बस रही। है शुद्ध ज्ञानानंद मय, तारण- तरण गुरू ने कही। जो जानते मम आत्मा, अरिहंत सिद्धों सारखी। वह अन्तरात्मा धन्य है, चैतन्य का जो पारखी ॥५॥ ज्यों अग्नि रहती काष्ठ में, घी दूध में सर्वत्र है। ज्यों गंध रहती पुष्प में, आकाश में ज्यों छत्र है॥ त्यों आत्मा सर्वत्र तन में, भिन्न जिसने भी लखी। वह अन्तरात्मा धन्य है, चैतन्य का जो पारखी ॥६॥ मैं क्रि या भावों से तथा, पर्याय के भी पार हूँ। मैं ब्रह्म हूँ परमात्मा, चिन्मय समय का सार हूँ॥ चल दिया मुक्ति मार्ग पर, है पात्रता जिसकी पकी। वह अन्तरात्मा धन्य है, चैतन्य का जो पारखी ॥७॥ समकिती ज्ञानी किसी भी, भव मांहि कैसा ही रहे। निज पर पिछाने सदा ही, पर्याय में वह न बहे ॥ समता रसायन पिये नित, फिर हो भले ही नारकी। वह अन्तरात्मा धन्य है, चैतन्य का जो पारखी ||८|| जिसने स्वयं अनुभव किया, जग परिणमन स्वतंत्र है। सब द्रव्य हैं स्वाधीन, जग में कोई न परतंत्र है। मैं स्वयं का स्वामी स्वयं, श्रद्धा सही निरधार की। वह अन्तरात्मा धन्य है, चैतन्य का जो पारखी ॥९॥ जिस जीव का जिस द्रव्य का, जिस समय में जो हो रहा। निश्चित सभी क्रमबद्ध है, अज्ञान वश तू रो रहा ।। ज्ञानी नहीं कर्ता न भोक्ता, रूचि नहीं संसार की। वह अन्तरात्मा धन्य है, चैतन्य का जो पारखी ॥१०॥ पढ़-पढ़ अनेकों पोथियां, अरू पुराणों को जग मुआ। लेकिन अभी तक कोई भी,न ज्ञानमय पंडित हुआ। जो पढ़े आत्मा ढाई अक्षर, तजे दृष्टि विकार की। वह अन्तरात्मा धन्य है, चैतन्य का जो पारखी ॥११॥ सदगुरू शिक्षा मानकर, निज आत्मा को जान लो। होकर विवेकी भेदज्ञानी, तत्व निर्णय ठान लो ॥ जो रहे ब्रह्मानंद मय, है देशना गुरू तार की। वह अन्तरात्मा धन्य है, चैतन्य का जो पारखी ॥१२॥ 44
SR No.009711
Book TitleAdhyatma Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherTaran Taran Sangh Bhopal
Publication Year1999
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size3 MB
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