SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निर्वेद संसार तन अरू भोग दु:ख मय, रोग हैं भव ताप हैं। उनके निवारण हेतु यह, निर्वेद गुण की जाप है। निःशल्य हो निर्द्वन्द हो, निर्लोभ अरू नि:क्लेश हो। निर्वेद गुण धारण करूं, यह आत्मा परमेश हो ॥२८॥ भक्ति भक्ति करूं सत देव की, गुरू शास्त्र की व्यवहार से। निश्चय अपेक्षा गाढ़ प्रीति, हो समय के सार से ॥ सु ज्ञान का दीपक जला, मोहान्ध की कर दूं विदा। इस हेतु से भक्ति करूं, पा जाऊं शिव पद शर्मदा॥३२॥ निन्दा यह शल्य के मिथ्यात्व के, कुज्ञान मय जो भाव हैं। जितने अशुभ परिणाम अरू, सब राग द्वेष विभाव हैं। अक्षय सु पद प्राप्ति के हेतु, नित करूं आलोचना। निन्दा करूं मैं दुर्गुणों की, भव भ्रमण दु:ख मोचना ॥२९॥ वात्सल्य साधर्मियों से हे प्रभो, मुझको सदा वात्सल्य हो। ईर्ष्यादि दोष विहीन मेरा, मन सदा निःशल्य हो । चैतन्य मूर्ति आत्मा से, प्रीति हो अनुराग हो। निज में रमूं निज में जमू, आठों करम का त्याग हो॥३३॥ निष्कर्म पद की प्राप्ति हेतु, वल्सलत्व ग्रहण करूं। होगी सफल पूजा तभी, जब मैं भवोदधि से तरूं॥ गर्दा निज दोष गुरू के सामने, निष्कपट होकर के कहूं। जो जो हुई हैं गल्तियां, उनका सुप्रायश्चित चहूं । निर्दोष होने के लिये, निन्दा गर्दा उर में धरूं। अन्तर विकारों को जलाकर, मुक्ति की प्राप्ति करूं॥३०॥ उपशम भीतर भरा निज ज्ञान सिंधु, जलधि सम लहरा रहा। ऐसी परम सित शांति को,सम्यक्त्वगुण उपशम कहा॥ भव रोग हरने हेतु मैं, नित ज्ञान में ही आचरूं। उपशम सुगुण से करूंपूजा, शान्त समता में रहूं ॥३१॥ अनुकम्पा संसार के षट्काय जीवों पर, दया परिणाम हो। मुझसे कभी कोई दु:खी न हो, सुबह या शाम हो ॥३४॥ मेरी रहे मुझ पर दया, आतम दु:खी न हो कभी। निज आत्मा से दूर ठहरें, मोह रागादिक सभी ॥ मैं मुक्ति फल की प्राप्ति हेतु, शुद्ध अनुकम्पा धरूं। शुद्धात्मा में लीन होकर, मुक्ति की प्राप्ति करूं ॥३५॥ अष्टांग अरू गुण सहित,संयम आचरण पथ पर चलूं। होकर विरागी वीतरागी, कर्म के दल को दलूं ॥ सम्पूर्ण पापों से रहित, व्रत महाव्रत को आचरूं। निज रूप में तल्लीन हो, अरिहन्त पद प्राप्ति करूं ॥३६॥ 17 18
SR No.009711
Book TitleAdhyatma Aradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherTaran Taran Sangh Bhopal
Publication Year1999
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy