________________
* तारण-वाणी *
जिस होत प्रगटै प्रापनी निधि, मिटै पर की प्रवृत्ति सब । जिन परम पैनी, सुबुधि छैनी, डारि अन्तर भेदिया । वर्णादि अरु रागादि तैं, निज भाव को न्यारा किया || निज मांहि निजके हेतु, निजकर, आपको श्रापै गह्यो । गुण गुणी ज्ञाता ज्ञान ज्ञेय, मंकार कछु भेद न रह्यो । जहं ध्यान ध्याता ध्येय को न, विकल्प वच भेद न जहाँ । चिद्भाव कर्म दिदेश कर्ता, चेतना किरिया तहाँ । तीनों अभिन्न अखिन्न लखि शुध - उपयोग की निश्चल दशा । प्रगटी जहां हग-ज्ञान-व्रत ये, तीनघा एकै लशा || परमाणनय निक्षेप को, न उद्योत अनुभव में दिखे । टग - ज्ञान-सुख बल मय सदा, नहिं श्रान भाव जु मो विषै ॥ मैं साध्य साधक, मैं श्रवाधक, कर्म अरु तसु फलनि तैं चित पिंड चंड श्रखंड, सुगुन- करंड, च्युत पुनि कलनितें ॥ चिंत्य निज में थिर भए, तिन अकथ जो आनंद लह्यो । सो इन्द्र नाग नरेन्द्र वा अहमिन्द्र के नाहीं कह्यो ।i
1
[ ६९
इस अवस्था में ( स्वरूपाचरण चारित्र में ) आ जाय तब वह निश्चय सम्यक्त्वी कहा गया है । तात्पर्य यह कि द्रव्यादि तत्वों के यथार्थ स्वरूप को हृदयंगम करके जिसने चौथे गुणस्थान को जो कि अत्रसम्यग्दृष्टि कहा गया है, से वह व्यवहारसम्यक्त्वी कहा जाता है और इस व्यव हारसम्यक्त्व की वृद्धि करके पुरुषार्थ द्वारा पांचवां गुणस्थान जो कि व्रती श्रावक का जिसमें कि ग्यारह प्रतिमाओं की उत्तरोत्तर वृद्धि करता हुआ अर्थात् उत्तमोत्तम श्रावक, ऐलक पद प्राप्त करना कहा है । तत्पश्चात् पुरुषार्थ द्वारा छटवां गुणस्थान मुनिपद को प्राप्त करके ध्यान की जो अवस्था ७ गुणस्थान से लगाकर ११ वें गुणस्थान पर्यन्त की है, यहां तांई वह व्यवहारसम्यक्त्री ही है, और इस व्यवहार पुरुषार्थ के द्वारा जब वह बारहवें गुणस्थान यथाख्यातचारित्र को प्राप्त कर ता है कि जिस यथाख्यातचारित्र में - "यों चिंत्य निजमें थिर भए, तिन अकथ जो आनंद लह्यो । सो इन्द्र नाग नरेन्द्र बा, अहमिन्द के नाहीं कह्यो ।” तब निश्चय सम्यक्त्री जानना । कि जिसके होते ही अन्तर्मुहूर्त में केवलज्ञान प्रगट हो जाता है। प्रयोजन यह कि यथाख्यातचारित्र बारहव गुणस्थान के न होने तक चौथे गुणस्थान अव्रतसम्यग्दृष्टि से लगाकर ११वें गुणस्थान तक की मुनि अवस्था वाले जीव सब व्यवहार सम्यक्त्वी जानना और सिर्फ एक बारहवें गुणस्थान वाले को निश्चय सम्यक्त्व जानना कि जिसके होते ही केवलज्ञान हो जाता है। ध्यान रहे कि गाथा १६ व २० में द्रव्यादि तत्त्वों को श्रद्धान करने वाला सम्यवत्वा कहा तथा गाथा २२ में शक्ति अनुसार वाली