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________________ • तारण-बाणी.. है। और यह भी कहा जा सकता है कि उनमें किसी को पार करने की शक्ति नहीं जिस तरह स्वावलंबन ( अपनी आत्मा के बल पर ) से वह पार हुए, किसी ने उन्हें पार नहीं किया। इसी तरह हमें भी अपनी ही आत्मा के बल पर पार होना पड़ेगा, यदि होना है तो। दृष्टांत-तूमड़ी का स्वभाव है कि वह पानी में डूबती नहीं । आप दो तूमड़ियों पर मिट्टी लपेटकर पानी में डुबा ६, उनमें से जिस नमड़ी की मिट्टी पहले घुल जायगो वह पानी को सतह पर पहले पा जायगी, किन्तु उसमें यह शक्ति नहीं कि दूसरी को साथ में ऊपर उठाले । वरउवनलड़ी गाथा ____ "वर उवनलड़ी गाथा"-इसमें श्री तारण स्वामी कहते हैं कि-हे भाई ! मेरा प्रम उत्कृष्ट रद कं (आत्म-पद) के प्रकाश में हो रहा है, मेरे भाग्य का उदय हुआ है, मैने ज्योतिम्वरूप आत्म-जिनेन्द्र को पा लिया है । हे आत्म-जिनेन्द्र ! तेरा चारित्र अच्छा लगता है, तेरा चारित्र स्वयं तुझे प्रगट जिनेन्द्र पद प्रदान कर देगा ॥१॥ हे प्रभू ! तेरा परिणमन अच्छा लगता है । तू निभय जिनेन्द्र है, तेरी भक्ति से तू स्वयं अभय पद पा लेगा, तेरे सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र-तीनों रन्न अच्छे लगते हैं। तू अपने रत्नत्रय में रमण करके प्रगट जिनेन्द्र पद पा लेगा ॥२॥ हे प्रभू आत्म-देव ! तेरा श्रात्मानुभव परमप्रिय लगता है। तू अतीन्द्रिय जिन है, तेरे ज्ञान से तू स्वयं उसका दर्शन कर रही है। तेर, वीर्य सर्वोपरि है, तू उस अपने बल के द्वारा प्रगट जिनेन्द्र हो जायगा ॥३॥ हे प्रात्मजिनेन्द्र । तेरा क्षायिक भाव परम सुख रूप है, आनन्द रूप है । इसके द्वारा ही कर्मा का क्षय होता है, इसी लिए तेरा आनन्द गुण परमप्रिय लग रहा है। तेरे इस आनन्द मगन होने से तू अनन्त सुख का भोक्ता बन जायगा ॥४॥ हे प्रभू ! तेरी आत्म-मगनता अमृत वर्षा रही है, इसी आत्ममगनता के द्वारा अब तेरे समस्त कर्ममल हट जायेंगे और तू प्रगट जिनेन्द्र हो जायगा । तेग आत्मरमण रूप चारित्र तुझे क्षण-क्षण निर्वाण की ओर ले जा रहा है ॥५॥ हे आत्म जिनेन्द्र ! तेरा नन्दपना अच्छा लगता है, जिसके द्वारा बीतरागता का आनन्द झलक नाता है । तेरा आनन्द भी सुहाता है, जिसके द्वारा चिदानन्द मई स्वभाव सहज में मिल जाता है ॥६॥ हे आत्मप्रभू ! तेरा सहज स्वभाव अच्छा लगता है, जिससे परमानन्द में रमण होता है। तेरी मुक्ति रूप परिणति भी भली झलक रही है। तेरी यह मुक्ति प्रेम-परिणति तुझे मोक्ष पहुँचा देगी ॥७॥ हे पात्म-जिनेन्द्र ! तेरा शुद्धोपयोग तो बड़ा प्यारा लगता है कि जिसके द्वारा तू मोक्ष में रमण कर कर रहा है। आज का यह तेरा मोक्षभाव का रमण समय पाकर तुझे प्रगट मोक्ष पहुँचा देगा। तेरा दर्शन भी प्रिय लग रहा है, इसी दर्शन से तू प्रगट जिनेन्द्र होकर अनन्त दशन प्राप्त करेगा ॥॥ हे स्वामी ! तेरा आत्मीक रस अच्छा लग रहा है, यही रस परमात्म रस का पान कराएगा। तेरा अपने पाप का ध्यान तो शांति रस की वर्षा कर रहा है, जो तुझे प्रगट जिनेन्द्र बनाकर शांतिसागर के रस का पान कराएगा ॥६॥ हे आत्मजिनेन्द्र !! तेरे पास
SR No.009703
Book TitleTaranvani Samyakvichar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami
PublisherTaranswami
Publication Year
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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