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* तारण-वाणी*
विगतरूवं, परिणय-परनइ शुद्धा, परन्ति-कम्मखिपन, सातु-अर्थशुद्ध', ऋत्यतु-ऋत्यरूवं, सोधच-प्रात्मशुद्ध', अवयास-नन्तनन्त, इष्ट-सयोगदिस्ट, गर्जन्तु-कम्म तिविहं, विज्ञान-मानरूवं, दमन च-कम्म सुभाव, गलन्तु-मिच्छकम्म, विरय-संसार सुभावं, तिक्तति-कम्म तिविह, छिदंतितिविह कम्म, निन्दति-परदव्वभावसद्भाव, वेदंतु-वेदज्ञान ।
"ज्ञान दृष्टि उववन्नं, जे सूरं तिमिरनाशनं सहसा" जिस तरह अत के वाक्य की पूरी गाथा दो गई है इसी तरह श्री उपदेश शुद्धसार जी ग्रंथ में उपरोक्त प्रत्येक वाक्य की गाथायें श्री तारण म्वामी ने रची है ।"
वेदतु-वेद ज्ञानं, अर्थात हे भव्यो ! अनुभव करो तो ज्ञानरूप वेद-शास्त्रों का करी कि जिससे तुम्हारी ज्ञानदृष्टि जाग्रत होगी, जिस ज्ञान-सूर्य के उदय होने पर अज्ञानांधकार स्वयं तत्काल नाश हो जायगा।
नोट:- इसो शैली से प्रत्येक वाक्य की गाथायें हैं जिन सब वाक्यों का भाव पढ़ते समय स्वयं झलक रहा है, इससे प्रत्येक वाक्य की गाथा व अर्थ नहीं लिखा गया ।।
३१-'अ' लहन्तो, जिन उक्त-निगोयं दल पम्यते । जिनवाणी की बात को अथवा अंतरंग से उत्पन्न यथार्थ बात को जो ग्रहण नहीं करते ऐसे अवहेलना करने वाले मानव हीनकों को बांधते हैं।
३२-अनृत, ऋतं जानति, प्रकृति मिथ्या निगोदयं । मिथ्यात्व प्रकृति के वशीभूत हुआ मानव झूठे पदार्थों में सत्य का आरोप करक-जो अपने नहीं उन्हें अपना मानकर हीनकर्म बांधता है।
३३-कुदेव कुगुरु वंदे, अदेव अगुरु मान्यत, कुशास्त्रं चिंतन सदा, विकहा अनृत सद्भावं-त्रिभंगी नरय दलं । कुदेव (रागी द्वेषी देव ) कुगुरु ( भेषधारी द्रव्यलिंगी साधु ) की वंदना तथा प्रदेव (नहीं है देवत्वपना ऐसी अचेतन मूर्तियाँ) अगुरु ( नहीं है गुरुत्वपना जिनमें ऐसे मनुष्यों) की जो मान्यता करता है तथा कुशास्त्र (जिन ग्रंथों में राग, द्वेष, मोहादि को पोषण करने की कथायें हों) उनका चितवन करके जिसने विकथाओं को अपने हृदय में बैठाल लिया हो इस तरह की यह तीन बातें खोटे कर्म को बांधती हैं।
३४-'अ' लहतो ज्ञान रूपेण-मिथ्यात् रति तत्परा। जो ज्ञानस्वरूप प्रात्मा को प्राप्त नहीं करता वह मिध्यात्व से प्रीति करने में ही तत्पर रहता है । आत्मज्ञान से ही मिथ्यात्व दूर होता है।
३५-माशा स्नेह पारक्त, लोभ संसारबंधनं । आशा, स्नेह और लोभ ये तीन भाव संसार-बंधन के कारण हैं।
३६-'अ' लहन्तो न्यानरूपे ।-मिथ्या माया विमोहितं । जो ज्ञानस्वरूप आत्मा को नहीं प्राप्त करता, नहीं जानता वह मिथ्यारूप माया (झूठो माया) में विमोहित रहता है ।