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• तारण-वाणी
से ही मोक्षमार्ग बने है। आगम के जानें बिना मोक्षमार्ग नहीं बने है, अत: भागम ज्ञान ही कार्यकारी है।
श्री कुन्दकुन्दाचार्य रचित जितने भी प्रथों का तथा उन्हीं में से यह अष्टपाहुड़ प्रथ का आद्योपान्त अध्ययन किया जिसकी प्रत्येक गाथाओं का और श्री तारण स्वामी रचित श्री अध्या-- त्मवाणी जी प्रथ की प्रत्येक गाथा का बिल्कुल एक ही सिद्धांत पाया गया। कहीं कोई रंचमात्र भी अन्तर नहीं पाया जाता।
प्रत्युत ऐसा ही लगता है कि श्री कुन्दकुन्द स्वामी के सिद्धांतों को जो अवहेलना भट्टारकों को स्वार्थपरता के कारण जैन समाज में हो रही थी उस भूल को दूर कर पुन: श्री कुंदकुन्द स्वामी के सिद्धांत की प्रतिष्ठा श्री तारण स्वामो ने की । सिद्धांतवेत्ता विद्वान इस सत्य से कभी इन्कार नहीं कर सके हैं और न कर ही सकेंगे, ऐसा मेरा आत्म-विश्वास है ।
यदि कदाचित श्री कुन्दकुन्द स्वामी को मूर्ति की मान्यता अभीष्ट होती तो मोक्षपाहुड की ( गाथा ०८५ से नं० १०६ तक ) गाथा २२ में स्पष्ट हो श्रावकों को उसकी मान्यता करने का विधि विधान अवश्य ही बताते । और उसे मानने पूजने वालों को मोक्षमार्गी नहीं तो कम से कम धर्मात्मापने के शब्दों से तो संबोधन अवश्य ही करते, किन्तु नहीं, कहीं रंचमात्र भी कोई चर्चा नहीं की है। इससे अधिक और क्या प्रमाण दें ?
-- गुलाबचन्द ।