________________
१३८]
* तारण-वाणी
तिनि में मिथ्यात्व के उदय करि मिथ्यात्व गुणस्थान होय है, पर सम्यक्त्व मिथ्यात्व दोऊ के मिलाप करि मिश्र गुणस्थान होय है, इस तीसरे गुणस्थान ताई तो आत्मज्ञान का अभाव ही जानना, बहुरि जब काल लब्धि के निमित्त तैं जीवाजीव पदार्थनि का ज्ञान श्रद्धान भये सम्यक्त्व होय तब या जीव कू अपना पर का अर हिताहित का हेय उपादेय का जानना होय है। तब आत्मा की भावना होय है तब अविरतगुण ( अविरत सम्यग्दृष्टि ) नामक चौथा गुणस्थान होय है, अर जब एक देश पर द्रव्य ते निवृत्ति का परिणाम होय है तब जो एक देश चारित्र रूप पांचवाँ गुणस्थान होय है ताकू श्रावक पद कहिये है, बहुरि सर्व देश पर द्रव्य ते निवृत्ति रूप परिणाम होय सकल चारित्र छट्ठा गुणस्थान कहिये, यहीं से मुनिपणा का प्रारंभ जानना, इत्यादि ।
ऐसे मोक्ष का अर मोक्ष के कारण का स्वरूप जिन आगम तें जानि अर सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र मोक्ष का कारण कहा है, ताकू निश्चय व्यवहार रूप यथार्थ जानि सेवना अर तप भी मोक्ष का कारण है सो भी चारित्र में अन्तर्भूत करि त्रयात्मक ही कहा है। एसै इनि कारणनि तें प्रथम तो तद्भव ही मोक्ष होय है अर जेते कारणनि की पूर्णता न होय ता पहिले कदाचित आयु कर्म की पूर्णता हो जाय तो स्वर्ग विर्षे देव होय है, तहां भी यह वांछा रहै जो यह शुभोपयोग का अपराध है, यहां से चयकरि मनुष्य होऊँगा, तब सम्यग्दर्शनादि मोक्षमार्ग कू सेय मोक्ष प्राप्त करूँगा, ऐसी भावना रहै है तब तहां संचय मनुष्य जन्म लेय मोक्ष कू जाय है, पावै है ।
अर अबार इस पंचमकाल में द्रव्य क्षेत्र काल भाव की सामग्री का निमित्त नांहीं ताते तद्भव मोक्ष नाही, तौऊ जो रत्नत्रय कू शुद्धता करि सेवै तौ यहाँ तैं देव पर्याय पाय पोछे मनुष्य होय मोक्ष पावै है । तातें यह उपदेश है जैसे बनें तैसें रत्नत्रय की प्राप्ति का उपाय करना, तहाँ भी सम्यग्दशन प्रधान है, ताकर उपाय तो अवश्य चाहिये, तातें जिन आगम कू' समझि सम्यक्त्व का उपाय तो अवश्य ही करना योग्य है, ऐसैं इस ग्रन्थ का संक्षेप जानों।
(प) जयचन्द जी छावड़ा जयपुर ।) पाठको ! इस लेख में संसारी आत्मा को मोक्ष पाने तक कहीं भी प्रतिमा पूजन की आवश्यकता नहीं बताकर एकमात्र जिनागम को समझने की प्रेरणा की गई है कि जिसके द्वारा मम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र और तप इन सबका जानना होय है और जानकर उन्हें मानकर चलने से ही मोक्षमार्ग बने है। आगम के जानैं बिना मोक्षमार्ग नहीं बने है अत: आगमज्ञान ही कार्यकारी है।
पाठको ! इस लेख में संसारी आत्मा को मोक्ष पाने तक कहीं भी प्रतिमा पूजन की आवश्यकता नहीं बता कर एकमात्र जिनागम को समझने की प्रेरणा की गई है कि जिसके द्वारा सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र और तप इन सबका जानना होय है और जानकर उन्हें मान कर चलने