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* तारण-वाणी -
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योगीन्द्राचार्य निज पर का अनुभव करे, पर तज ध्यावै आप । अन्तरात्मा जीव सो, नाश करै य ताप ।।८।। आप आपने रूप को, जाने सो शिव होय । पर में अपनी कल्पना, करै भ्रमै जग सोय ॥१२॥ स्वातम के जाने बिना, करै पुण्य बहु दान । तदपि भ्रमैं संसार में, मुक्ति न होय निदान ॥१५।। जब तक आतम ज्ञान ना, मिथ्या क्रियाकलाप । भटको तीनों लोक में, शिवसुख लहो न आप ॥२७॥ जो शुद्धातम अनुभवे, प्रत संयम संयुक्त । कहें जिनेश्वर जीव सो, निश्चय पावै मुक्त ॥३०॥ लहै पुण्य से स्वर्गसुख, नर्क पड़े करि पाप । पुण्य पाप तज आपमें, रमें लहै शिव आप ॥३१॥ व्रत तप संयम शील जिय, शिव कारण व्यवहार । निश्चयकारण मोक्ष को, आतम अनुभव सार ॥३२॥ एक सचेतन जीव सब, और अचेतन जान । सो चेतन ध्यावो सदा, तुरत लहौ शिवथान ॥३५॥ चेतन ही सर्वज्ञ है, अन्य अजीव न कोय । कहा कहत जिनमुनि यही, निश्चय जानों सोय ॥३८॥ जहां जीव तहँ सकल गुण, कहत केवली एम । प्रगट स्वानुभव आपका, निर्मल करो सप्रेम ||४|| पुरुषाकार पवित्र अति, देखे आतम रूप ।
मो पवित्र हो शिव लहै, होवे त्रिभुवनभूप ॥६॥ इस तरह कुन्दवन्दाचार्य, योगीन्द्रदेवाचार्य इत्यादि सभी प्राचीन आचार्यों द्वारा रचित पार्ष ग्रन्थों में श्री तारण म्वामी के सिद्धांत-पोषक हजारों प्रमाण पाठकों को मिलेंगे, जिनमें आत्मा की मान्यता-पूजा की तथा केवल एक जिनवाणी का आधार और उस प्राधार द्वारा भावों की शुद्धि करने पर ही मोक्षमार्ग बनता है । दूसरा कोई अवलम्बन मोक्षमार्ग नहीं।
जैन सिद्धांत की एक यही तो सर्वोपरि विशेषता है कि यह जैन सिद्धांत भगवान की प्रतिमा तो क्या, साक्षात् भगवान की पूजा से भी मोक्षप्राप्ति नहीं मानता ।