________________ द्वादशः प्रकाशः योग. शाखम् 11775 // बाह्यात्मानमपास्य प्रसत्तिभाजान्तरात्मना योगी / सततं परमात्मानं विचिन्तयेत्तन्मयत्वाय // 6 // स्पष्टा // 6 // बहिराद्यात्मनां स्वरूपमार्याद्वयेनाह-- आत्मधिया समुपात्तः कायादिः की तेऽत्र बहिरात्मा। कायादेः समधिष्ठायको भवत्यन्तरात्मा तु // 7 // चिद्रूपानन्दमयो निःशेषोपाधिवर्जितः शुद्धः / अत्यक्षोऽनन्तगुणः परमात्मा कीर्तितस्तज्ज्ञैः // 6 // स्पष्टे // 7-8 // बहिरात्मान्तरात्मनोहेंदज्ञाने यद्भवति तदाहपृथगात्मानं कायोत्पृथक् च विद्यात्सदात्मनः कायम् / उभयोर्भेदज्ञातात्मनिश्चये न स्खलेद्योगी // 9 // स्पष्टा // 9 // तथाहि अन्तःपिहितज्योतिः संतुष्यत्यात्मनोऽन्यतो मूढः / तुष्यत्यात्मन्येव हि बहिनिवृत्तभ्रमो ज्ञानी // 10 // स्पष्टा // 10 // तदेवाह INDAIL