________________ बोगशास्त्रम् पकादशः प्रकाशा 1725 // ततो विवेकमाश्रित्य विरज्याशेषभोगतः / ध्यानेनध्वस्तकर्माणः प्रयान्ति पदमव्ययम् // 24 // स्पष्टाः // 18-24 // इति परमाईतश्रीकुमारपालभूपालशुश्रूषिते आचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितेऽध्यात्मोपनिषन्नाम्नि संजातपट्टबन्धे श्रीयोगशास्त्रे स्वोपर्श दशमप्रकाशविवरणम् // 10 // -Rotes अथैकादशः प्रकाशः // 11 // ओं अहं // धर्मध्यानमुपसंहरन् शुक्लध्यान प्रस्तौति-- स्वर्गापवर्गहेतुर्धमध्यानमिति कीर्तितं तावत् / अपवर्गकनिदानं शुक्लमतः कीर्त्यते ध्यानम् // 1 // धर्मध्यानस्यापवर्गहेतुत्वं पारम्पर्येण, अपवर्गस्यैकमसाधारण निदान कारण शुक्लध्यानम्, इदं चोत्तरशुक्लध्यानद्वयापेक्षया द्रष्टव्यम् / आधयोस्तु शुक्लध्यानभेदयोरनुत्तरविमानगमननिबन्धनताऽप्यस्ति / यदाह १होंति सुहासवसंवरविणिज्जरामरसुहाई विउलाई। झाणवरस्स फलाई सुहाणुबन्धीणि धम्मस्स // 1 // (1) भवन्ति शुभाश्रवसंवरविनिर्जरामरसुखानि विपुलानि / ध्यानवरस्य फलानि शुभानुबन्धीनि धर्म्यस्य // 1 // 1755 /