________________ योगशास्त्रम् दशमा प्रकाशः। 750 // सर्वज्ञवचनं सूक्ष्मं हन्यते यन्न हेतुभिः। तदाज्ञारुपमादेयं न मृषाभाषिणो जिनाः // 9 // __ स्पष्टः / अत्रान्तरश्लोकाः-- आज्ञा स्यादाप्तवचनं सा द्विधैव व्यवस्थिता / आगमः प्रथमा तावद्धतुवादोऽपरा पुनः // 1 // शब्दादेव पदार्थानां प्रतिपत्तिकृदागमः / प्रमाणान्तरसंवादाद्धेतुवादो निगद्यते // 2 // द्वयोरप्यनयोस्तुल्य प्रामाण्यमविगानतः / अदुष्टकारणारब्धं प्रमाणमिति लक्षणात् // 3 // दोषा रागद्वेषमोहाः संभवन्ति न तेऽहति / अदुष्टहेतुसंभूतं तत्प्रमाण' वचोऽर्हताम् // 4 // नयप्रमाणसंसिद्धं पूर्वापर्याविरोधि च। अप्रतिक्षेप्यमरैर्बलिष्ठेरपि शासनैः // 5 // अङ्गोपाङ्गप्रकीर्णादिबहुभेदापगाम्बुधिम / अनेकातिशयप्राज्यसाम्राज्यश्रीविभूषितम् // 6 // दुर्लभ दूरभन्यानां भव्यानां सुलभं भृशम् / गणिपिटकतयोच्चैनित्यं स्तुत्य नरामरैः // 7 // एवमाज्ञां समालम्ब्य स्याद्वादन्याययोगतः / द्रव्यपर्यायरूपेण नित्यानित्येषु वस्तुषु // 8 // स्वरूपपररूपाभ्यां सदसट्ठपशालिषु / यः स्थिर: प्रत्ययो ध्यानं तदाज्ञाविच याहयम् // 6 // 9 // ___ अथापायविचयमाहरागद्वेषकषायाद्यैर्जायमानान् विचिन्तयेत् / यत्रापायांस्तदपायविचयध्यानमिष्यते // 10 // रागद्वेषजनितानामपायानां विपयो विचिन्तनं यत्र तदपायविचयम् // 10 // तस्य फलमाहऐहिकामुष्मिकापायपरिहारपरायणः। ततः प्रतिनिवर्तेत समन्तात् पापकर्मणः // 11 // // 50 //