________________ योगशास्त्रम् नवम प्रकाश 11001 तीर्थिकैरपरिज्ञातयोगमुद्रामनोरमम् / अक्ष्णोरमन्दमानन्दनिःस्यन्द दददद्भुतम् // 9 // जिनेन्द्रप्रतिमारूपमपि निर्मलमानसः। निर्निमेषदृशा ध्यायन् रूपस्थध्यानवान् भवेत् // 10 // ___ स्पष्टाः / / 8-10 // ततश्च | योगी चाभ्यासयोगेन तन्मयत्वमुपागतः। सर्वज्ञीभूतमात्मानमवलोकयति स्फुटम् // 11 // | सर्वज्ञो भगवान् योऽयमहमेवास्मि स ध्रुवम् / एवं तन्मयतां यातः सर्ववेदीति मन्यते // 12 // ____ स्पष्टौ // 11-12 // कथमित्याह| वीतरागो विमुच्येत वीतरार्ग विचिन्तयन् / रागिणं तु समालम्ब्य रागी स्यात्क्षोभणादिकृत् // 13 // ___ स्पष्टः // 13 // उक्तं चB येन येन हि भावेन युज्यते यन्त्रवाहकः। तेन तन्मयतां याति विश्वरूपो मणिर्यथा // 14 // ___ स्पष्टः // 14 // एवं सध्ध्यानमुक्त्वाऽसध्ध्यानं निराकुर्ववाहनासध्यानानि सेव्यानि कौतुकेनापि किन्त्विह / स्वनाशायैव जायन्ते सेव्यमानानि तानि यत् // 15 // स्पष्टः // 15 // कुतः?-- // 47 //