________________ योगशास्त्रम्॥ नवमः प्रकाशः // 746 // ॥अथ नवमः प्रकाशः: 9 ___ ओं अहं / अथ रूपस्थं ध्येयं सप्तभिः श्लोकैराह7 | मोक्षश्रीसम्मुखीनस्य विध्वस्ताखिलकर्मणः। चतुर्मुखस्य निःशेषभुवनाभयदायिनः // 1 // इन्दुमण्डलसंकाशच्छत्रत्रितयशालिनः / लसद्भामण्डलाभोगविडम्बितविवस्तः // 2 // दिव्यदुन्दुभिनिघापगीतसाम्राज्यसंपदः। रणद्विरेफझङ्कारमुखराशोकशोभिनः // 3 // I सिंहासननिषण्णस्य वीज्यमानस्य चामरैः। सुरासुरशिरोरत्नदोप्रपादनखयुतेः // 4 // दिव्यपुष्पोत्कराकीर्णासङ्कीर्णपरिषद्भुवः / उत्कन्धरैर्मृगकुलैः पीयमानकलध्वनेः // 5 // | शान्तवैरेभसिंहादिसमुपासितसन्निधेः। प्रभोः समवसरणस्थितस्य परमेष्ठिनः // 6 // सर्वातिशययुक्तस्य केवलज्ञानभास्वतः। अर्हतो रूपमालम्ब्य ध्यानं रूपस्थमुच्यते // 7 // ___स्पष्टाः // 1-7 // प्रकारान्तरेण रूपस्थं ध्येयं त्रिभिः श्लोकैराहरागद्वेषमहामोहविकारैरकलङ्कितम् / शान्तं कान्तं मनोहारि सर्वलक्षणलक्षितम् // 8 // ||766