________________ योगशास्त्रम् अष्टमः। प्रकाश नाभिपद्मे स्थितं ध्यायेदकारं विश्वतोमुखम् / सिवर्ण मस्तकाम्भोजे आकारं वदनाम्बुजे // 7 // उकारं हृदयाम्भोजे साकारं कण्ठपङ्कजे / सर्वकल्याणकारीणि बीजान्यन्यान्यपि स्मरेत् // 77 // असिआउसा / बीजान्यन्यान्यपि नमः सर्वसिद्धेभ्यः इति // 76-77 // उपसंहरतिश्रुतसिन्धुसमुद्भुतमन्यदप्यक्षरं पद्म / अशेष ध्यायमानं स्यानिर्वाणपदसिद्धये // 78 // स्पष्टः // 7 // उक्तं चवीतरागो भवेद्योगी यत्किञ्चिदपि चिन्तयेत् / तदेव ध्यानमाम्नातमतोऽन्ये ग्रन्थविस्तराः // 79 // anl एवं च मन्त्रविद्यानां वर्णेषु च पदेषु च। विश्लेषः क्रमशः कुर्याल्लक्ष्मीभावोपपत्तये // 8 // स्पष्टौ // 76-80 // आशिषमाहइति गणधरधुर्याविष्कृतादुद्धृतानि, प्रवचनजलराशेस्तत्त्वरत्नान्यमूनि / B हृदयमुकुरमध्ये धीमतामुल्लसन्तु, प्रचितभवशतोत्थक्लेशनि शहेतोः // 1 // इति परमाईतश्रीकुमारपालभूपालशुश्रूषिते आचार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितेऽध्यात्मोपनिषभाम्नि संजातपट्टवन्धे श्रीयोगशास्त्रे स्वोपज्ञमष्टमप्रकाशविवरणम् // 8 // // 745 // * "लक्षा (क्ष्य)" इति प्रत्यन्तरम् //