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________________ नीचे नोंध्या छे-जेथी ते ते स्थळोमा सघळी प्रतिओ एक सरखी रीते केवी अने केटली विलक्षण विलक्षण रीते अशुद्ध थइ गइ छे ते अभ्यासीने मालूम पडे अने अशुद्धिनी उत्पत्ति केम थाय छे ? ते थया पछी केम वधे छे १ तेम ज घणीवार शुद्ध करवा जतां उलटी अशुद्धि केम आवे छे ? एनुं सूक्ष्म ज्ञान अशुद्धिनो इतिहास लखनार विद्वान्ने एवा पाठान्तरो उपरथी थइ शके. तेम न कोई अभ्यासीने ए अशुद्ध जणाता विविध पाठान्तरो उपरथी कालान्तरे शुद्ध पाठ कल्पवानी प्रेरणा मळे-आथी उलटुं जे भाग तद्दन शुद्ध अगर शुद्धप्राय छे त्यां प्रतिओमांथी मळी आवेला अनेक पाठान्तरोमांथी जे उपयोगी लाग्यां ते ज बहुधा राख्यां छे अने अन्तर्गडु जेवा अनुपयोगी जणायेलां पाठान्तरो तद्दन छोडी दीधां छे. (३) पहेला बे भागना संशोधनमा उपयोग नहीं कराएल एवा पण अनेक ग्रंथोनो प्रस्तुत भागना संशोधनमा उपयोग करवामां आव्यो छे. टीकामां आवेल अवतरणोना मूल स्थान बताववा, प्रतिपाद्य विषयनी अने पाठनी सरखामणी करवा, कल्पित शुद्ध पाठनो संवाद आपवा, एक ज विषयने भिन्न भिन्न दर्शनना ग्रंथकारो के एक ज दर्शनना भिन्न भिन्न समय भावी ग्रंथकारो केवी केवी रीते चर्चे छे ते जणाववा कोई पण विषय परत्वे अभ्यासीनी दृष्टीने व्यापक बनावी तेना अभ्यासनो मार्ग वधारे सरळ करवा अने कया ग्रंथ के कया ग्रंथकार उपर कोनी कोनी केटकेटली असर पडी छे तेनुं पृथक्करण करवानी सरळता करी आपवा एम अनेक दृष्टिथी प्रेराई प्रस्तुत भागना संशोधनमा कराएलो प्रचुरग्रंथराशिनो उपयोग अभ्यासको आपोआप जोई शकशे. प्रस्तुत भागना संशोधनमा अनेक ग्रंथनो उपयोग कर्या छतां पण एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथनो उपयोग करवो बाकी रही गयो छे. बौद्धभिक्षु धर्मकीर्तिप्रणीत हेतुबिन्दुना दुर्लभ विवरणनी जीर्ण ताडपत्रनी प्रति प्राप्त थयानुं सूचन अमे संमतिना द्वितीय भागना प्रारंभिक निवेदनमा ज करी गयेला छीए. प्रस्तुत भागना संशोधनमा ए प्रतिनो उपयोग करी शकायो होत तो केटलीक अशुद्धिओ दूर करवामां बहु किंमती मदद मळत पण प्रस्तुत ग्रन्थ छपाववा लाग्या पछी तेनी वांची शकाय तेवी नकल तैयार थई शकी. तेथी ए विवरणनी सरखामणी भविष्यना विशिष्ट परिशिष्ट माटे मुलतवी राखवानी फरज पडी छे. __ आ भागनी तैयारीथी मांडी प्रसिद्धि सुधीमां खास विद्यारुचिमहानुभावो तरफथी जे जे विविध सगवड मळी छे तेनी नीचे नोंध लई अमे अमारी कृतज्ञता प्रदर्शित करीए छीए. ख्यातनामा श्रीमदू आत्मारामजी महाराजना पट्टधर प्रशिष्य श्रीमद् विजयवल्लभसूरिनी प्रेरणाथी लाहोर शहेरना श्रीसंघे करेली आर्थिक मदथी आ कार्यने लायक सहकारी कार्यकर्ता मेळववामां अमने अतिउपयोगी राहत मळी छे. प्रवर्तक श्रीकान्तिविजयजीना प्रशिष्य अने अमारा हमेशना सहकारी सुशील मुनिश्रीपुण्यविजयजीए दूर रह्या रह्या पण संशोधनकार्यमां करेली विविध मददने लीधे अमने अतिकिंमती अनुकूलता प्राप्त थई छे. ते उपरात उपर सूचवेल हेतुबिन्दु विवरणनी तद्दन जीर्ण अने घसाएल भुंसाएल अक्षरवाळी तथा मुश्केलीथी पण वांची न शकाय एवी प्राचीन लिपिनी ताडपत्रनी प्रति उपरथी बहु परिश्रम लई तेओश्रीए अमारा उपयोग माटे एक सुवाच्य अक्षरवाळी सुंदरतम नकल करी आपी छे. जे पुरातत्त्वमंदिरना पुस्तकसंग्रहमा तेओश्रीना नाम साथे मूकवामां आवी छे. सुखलाल अने बेचरदास.
SR No.009696
Book TitleSanmatitarka Prakaranam Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size242 MB
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