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________________ संपादकीय निवेदन। संमतितर्कनो पहेलो भाग प्रसिद्ध थयांने बे वर्ष वीती गया. एटला वखतमां तैयार थई आ बीजो भाग आजे विद्वानो समक्ष उपस्थित थाय छे. आ भागमा बीजी, त्रीजी अने चोथी ए त्रण मूळ गाथाओ टीकासहित आवी जाय छे. आ भागनी तैयारीनी विशेषताः अशुद्धिनुं बाहुल्य, नवीन साधननो उपयोग अने बीजो विशिष्ट प्रयत्न. बीजी अने त्रीजी गाथानी टीका बहु मोटी छे. त्रीजीनी करतां बीजीनी टीका लगभग बमणी हशे. जेम टीका मोटी तेम अशुद्धि घणी. हजुसुधी संमतिनी एवी एक पण प्रति अमने उपलब्ध नथी थई के, जेने विश्वस्त रीते शुद्ध मानी मुद्रणमां मूळ आधार तरीके राखी शकाय. तेमा य ज्यां बौद्धादि दर्शनोनी चर्चा आवे छे त्यां तो अशुद्धिओ पुष्कळ ज छे. दरेक प्रतिमां अशुद्धिनी आ समानता जोई एम मानवाने कारण मळे छे के, आ ग्रंथy अध्ययन, अध्यापन घणा सैकाओथी विच्छिन्नप्राय थई गयेलं होवू जोईए; सांगोपांग शुद्ध करवानो प्रयत्न पण पूर्वे नहि थएलो; अने थयो होय तो तेनुं परिणाम आजे उपलब्ध नथी. अशिक्षित वाचको अने लेखको तथा अव्युत्पन्न अभ्यासीओनी वाचनलेखनविषयक तथा अर्थकल्पनाविषयक भ्रान्तिओ दरेक प्रतिमा भिन्नभिन्न रूपे नजरे पडे छे. आ कारणथी बीजी गाथानी टीकाए शुद्धीकरणमां वधारे वखत लीधो. छतां यथावत् संतोष तो थयो ज न हतो. संशोधनना विविध साधनोनी शोध चालती हती, ते दरमियान सद्भाग्ये एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ तरफ अमारुं ध्यान गयु. ___ आ महान् ग्रंथ ते बीजो कोई नहि पण बौद्धाचार्य आर्य शान्तिरक्षितनो तत्त्वसंग्रह. ए ग्रंथर्नु अवलोकन करतां जणायुं के, टीकाकार अभयदेवे बीजी गाथानी टीकानो बौद्धमतविषयक पूर्वपक्ष ए तत्त्वसंग्रहनी कमलशीलकृत पञ्जिकाने सामे राखीने ज लख्यो छे. एटले बीजी गाथानी टीकानो अपोहविषयक समग्र अंश उक्त पञ्जिकानी लगभग अक्षरशः नकल छे. आ वस्तु ध्यानमां आववाथी तत्त्वसंग्रहy ए प्रकरण बीजी गाथानी टीका साथे मेळवी लीधुं. अने ते पछी अशुद्ध भागने शुद्ध करवा तथा बीजी अनेक विशेषताओ दाखल करवा माटे फरी नवेसर विशिष्ट प्रयत्न शरू कर्यो, जेनुं फळ विद्वानो ओछा वधता प्रमाणमा प्रस्तुत पुस्तकमां जोई शकशे. पहेला भाग करतां बीजा भागना संशोधनमां विशिष्ट प्रयत्न थवानुं कारण तत्त्वसंग्रहनी उपलब्धि अने तेनो उपयोग ए छे. ज्यारे अनुभवे जणायु के, त्रीजी गाथानी टीकार्नु सांख्यमत (अशुद्धद्रव्यास्तिकनय) निरूपण प्रकरण तथा तेना खंडन- बौद्धमत (पर्यायास्तिकनय) प्रतिपादक प्रकरण प्रायः अक्षरशः कमलशीलनी परिजकानी नकल छे, त्यारे संशोधनमा तत्त्वसंग्रहनो अनेक दृष्टिए उपयोग करवानी कल्पना आवी अने तदनुसार प्रयत्न पण थयो. आ प्रयत्नने लीधे ज विलम्ब बेवडायो. पण अमने आशा छे के आ प्रयत्ननुं परिणाम समजनारने ए विलम्ब नहि खरके. प्रस्तुत कार्यमा तत्त्वसंग्रहनो उपयोग केवी रीते को छे ए अहीं जणावी देवु आवश्यक छे.
SR No.009696
Book TitleSanmatitarka Prakaranam Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size242 MB
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