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________________ ११ शब्दना अर्थनी मीमांसा तेम ज शब्द अने अर्थ ए बनेना संबंधनी मीमांसाना अतिदीर्घ प्रकरणमां पूर्वपक्षरूपे बौद्धसंगत अपोहचर्चा टीकाकारे मूकेली छे. प्रस्तुत पुस्तकनो पृ० १७३ थी २३२ सुधीनो ए चर्चानो भाग तत्त्वसंग्रहनी ८६७ थी १२१२ सुधीनी एटले एकंदर ३४६ कारिकाओ उपरनी गद्य पञ्जिकाज छे. तेवी ज रीते त्रीजी गाथानी टीकाना सांख्यमतनिरूपण अने तेना खंडननो प्रस्तुत पुस्तकनो पृ० २८० - २८४ तथा पृ० २९६- ३०७ सुधीनो भाग तत्त्वसंग्रहनी ७ थी ४५ सुधीनी एटले कुल ३९ कारिकाओ उपरनी पञ्जिका ज छे. पञ्जिकाना प्रायः अक्षरशः ए उताराने घे संग्रहनो उपयोग प्रस्तुत संशोधनमां मुख्यपणे त्रण दृष्टिधी करवामां आव्यो छेः (१) शुद्धिनी दृष्टि (२) ते ते गद्यभागनी मूळभूत कारिका बताववानी दृष्टि अने (३) शान्तिरक्षिते पोताना मूळ ग्रंथमां कया कया पूर्ववर्ती आचार्योंनी कारिकाओ लीवेली छे ते बताववानी दृष्टि. (१) ज्यां संमतिनी टीका अशुद्ध के त्रुटित जणाई त्यां तेने कोष्ठकमां शुद्ध अने पूर्ण करी तेना संवादखातर पञ्जिकानो जरूरी भाग अक्षरशः नीचे टिप्पणमां आपेलो छे. उदाहरणार्थे जूओ: पृ० १७४ टिप्पण २. पृ० १८१ टिप्पण १६ वगेरे. (२) संमतिनी टीकानो अमुक गद्यभाग तत्त्वसंग्रहनी कई कारिकानी व्याख्यारूपे छे ए जणाववा खातर ते गद्यभागनी नीचे टिप्पणमां तत्त्वसंग्रहनी ते ते कारिका अंक साथे आपवामां आवी छे, जेथी अभ्यासीओ तत्त्वसंग्रहनी मूळ कारिका अने तेनी पञ्जिका साथै अर्थशः तथा शब्दशः संमतिनी टीकाना ते ते गद्यभागने सरखावी शके. अने तत्त्वसंग्रहना अभ्यासीओ पोताने जोतुं स्थळ संमतिनी टीकामांथी अनायासे मेळवी शके. उदाहरण तरीके जूओः पृ० १७३ टिप्पण ९ वगेरे. (३) मूळ तत्त्वसंग्रहमां ज्यां ज्यां अन्य पूर्वाचार्योंनी कारिकाओ दाखल थपली जणाई छे त्यां त्यां यथासंभव ते ते पूर्वाचार्यनी कृतिमांथी ज ते कारिकानो अंक आपी साथै ज तत्त्वसंग्रहनो चालु कारिका अंक पण आपेलो छे. जेथी तत्त्वज्ञ अभ्यासीओ जाणी शके के, ए मूळ कारिका वस्तुतः कया आचार्यनी कई कृतिना कया प्रसङ्गनी छे. तेम ज ऐतिहासिको ए क्रमनो उपयोग कालनिर्णयमां पण करी शके. जूओ पृ० १७९ टिप्पण ८. पृ० १८६ टिप्पण २. पृ० १८७ टिप्पण ६ वगेरे. आ सिवाय बीजी पण एक सामान्य रीते तत्रसंग्रहनो उपयोग कर्यो छे अने ते ए के, संमतिनी टीकामां केलांक पद्यो कर्ताना नामनिर्देश विना आवे छे ते ज पद्यो ज्यां ज्यां पञ्जिकामांथी मळी आव्यां त्यां त्यां ते ज रीते टिप्पणमां दर्शाववामां आव्यां छे. अने आ समग्र उपयोग करवामां आवश्यक जणायुं त्यां संमतिनी टीका उपर भामहालंकार, वाक्यपदीय, लोकवार्तिक, तत्त्वसंग्रह, प्रमेयकमलमार्तड, स्याद्वादरत्नाकर, शास्त्रवार्ता समुच्चयटीका इत्यादिमांथी पाठान्तरो आप्यां छे अने बीजी रीते पण सविशेष उपयोग कर्यो छे. उदाहरण: पृ० १७४ टिप्पण ५ पृ० १८१ टिप्पण १६. पृ० १८६ टिप्पण २, ४, ५ पृ० १८२ टिप्पण ४. पृ० १८६ टिप्पण १२, ३. पृ० १७३ टिप्पण १०. पृ० १७६ टिप्पण २. पृ० २४८ टिप्पण १९. पृ० १८२ टिप्पण ६ वगेरे. उतारो चालु होवा छतां क्यांय क्यांय पञ्जिकानी वाक्यरचनाथी संमतिटीकानी वाक्यरचना नूदी पडे छे; तेवा स्थळे ए भिन्नता जणाववा खातर नीचे टिप्पणमां पञ्जिकानो गद्यभाग पण
SR No.009696
Book TitleSanmatitarka Prakaranam Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages516
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size242 MB
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