________________
४ ]
[ऋषिदत्ताचरित्रसंग्रहः ॥ [सुजन-दुर्जनयोर्भेदः]
सुयणो सोऊण इमं, गुणगहणं कुणइ जइ वि तं नत्थि । गुणभूसिए वि कव्वे, दोसे गिण्हइ खलो चेव ॥९॥ सुयणाण किं न नमिहह जे वि य दोसे वि पेच्छहिं गुणोहे । पियजणविरहे जह कोइ पिअयणं पेच्छइ वणुं पि ॥१०॥ न हु निम्मले वि किरणे रविणो पेच्छेइ कोसिओ तमसे । तह चेव गुणा इह दुज्जणो वि पेच्छेइ विवरीए ॥११॥ जइ वि हु बीहामि अहं खलाण एमेव तह वि कुवियाण ।
तह वि महंतं वसणं नो तीरइ उड्डिउं गयं ॥१२॥ अहवा- जो च्चिय एकस्स खलो सो च्चिय अण्णस्स सज्जणो होइ ।
कह सुयण-दुज्जयणाणं पसंस-निंदा अहं करिमो ॥१३।। जेण भणियं
रत्ता पेच्छंति गुणा दोसा पेच्छंति जे विरज्जंति । मज्झत्था पुण पुरिसा दोसे य गुणे य पेच्छंति ॥१४॥[ ] ता मज्झत्था तुम्हे दोसे परिहरह तह वि दट्ठण ।
गिण्हह विरले वि गुणे सुयणसहावं पि मा मुयह ॥१५।। [कथाप्रकाराः-तत्र धर्मकथायां धर्मनिरूपणम् ]
पत्थुयकारि कहाउ पण्णत्ताउ जिणेहिं सव्वेहिं । अत्थकहा कामकहा धम्मकहा मीस(ग)कहा य ॥१६।। अत्थकहाए अत्थो कामे तह चेव कामगकहाए। भण्णइ धम्मकहाए चउव्विहो होइ जह धम्मो ॥१७।। एसो पुण धम्मो भणिओ, जिणेहिं जियरागदोसमोहेहिं । तव-सील-दाण-भावण-भेएणं होइ चउहाओ ॥१८॥ अणसणमाई य तवो सीलं पुण होइ चरण-करणं तु । जीवदयाइ [य] दाणं अधु[व]याई भावणा हुंति ॥१९।। धम्मो अत्थो कामो भण्णइ मोक्खो वि मीसगकहाए । एसा सा मीसकहा भणामि हं जिणवरे नमिउं ॥२०॥
25
D:\amarata.pm53rd proof