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प्रशस्तिः ]
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[प्रशस्तिः ]
इय वीरभद्दसूरी नाइलवंसं.........................।
.......[ गुणपा] लेणं विरइयं ति ॥१०६।। संसारि भमंतेणं, जिणवयणं पाविऊण एयं तु । दुक्ख दुएण रइ........ .............॥१०७|| ........°वहीणेण तह य लंकारवज्जिएण मए । किल किं पि मए रइयं जिणपवयणभ.......॥१०८॥
..............°णेण किं पि विवरीयं । तं खमियव्वं मह सुयहरेहिं सुयरयणकलिएहिं ॥१०९॥
................जिणपवयणं ताव । वरपउमपत्तयणा पड................॥११०।।
इसी पत्र के B पार्श्व के भाग पर निम्न प्रकार की पंक्तियाँ पढ़ी जाती हैंपंक्ति १.......
........................मम नाणं ॥ हाइयउरंमि नयरे वासारत्तंमि विर[इयं एवं ? ।] पंक्ति २..........तीसाए अहियाई गाहग्गेणं तु बारस सयाइं । एयाइं जो निसुणइ सो पावइ.
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पंक्ति ३. संवत् १२८८ वर्षे अद्येह श्रीमदणहिलपाटके श्रीभीमदेवराज्ये
प्रवर्तमाने....१
१. रिसिदत्ताचरियं की इस ताडपत्रीय पुस्तिका को जिसने अपने द्रव्य से लिखवाया था उस गृहस्थ के कुटुम्ब आदि का परिचय कराने वाली एक १० पद्यों की संस्कृत प्रशस्ति भी इस पोथी के अन्त के ताडपत्र पर लिखी गई है। इस अन्तिम ताडपत्र का भी दक्षिण पार्श्व का आधा हिस्सा तूट गया है जिससे प्रशस्ति का भी खण्डित आधा भाग ही उपलब्ध होता है। जो भाग उपलब्ध है वह इस प्रकार है - पंक्ति १ A....... प्रभोः पान्तु नखेन्दुद्युतयोऽमलाः प्रणमज्जन्तुसंघातं कर्मतापभयाद्
भृशम् ॥१॥ प्राग्वाटवंशमाणिक्यं
D:\amarata.pm5\3rd proof