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________________ 5 10 15 20 25 ९२ ] [ ऋषिदत्ताचरित्रसंग्रहः ॥ अवहीए जा जोयइ, पुव्वभवं ताव पेच्छए सहसा । नवकार-अणसणेणं, जाणइ ह से कओ कालो ॥ २४४॥ पत्तं मया महंतं, जिणधम्माओ महापभावेणं । देवत्तं पुण्णेहिं, नवकारपभावेणिएहिं ॥ २४५॥ चिंतेऊणं एयं, नियए हिययम्मि सुरवरो तत्थ । सहसा उट्ठेइ तओ जिणनवकारं कुणइ तुट्ठो ॥ २४६ ॥ "जय कोह- माण-मय- मोहमुक्क ! जय भवियबोहणजिणंद ! । जय माणहत्थमद्दण ! जय केवलणाणदिवसयर ! ॥२४७॥ जय सयलजंतुबंधव ! जय जय मूढाण पंथवरदेस ! । जय भवियकुमुयबोहण ! जय जय संसारउत्तार ! ॥२४८॥ जय जीवाजीवपयासगवीर ! जय पुण्ण-पावभयमुक्क ! | जय सरणागयवच्छल ! जय सासयसोक्खपत्त ! ॥ २४९ ॥ जय जय सुरासुरसंथुय ! जय जय भवियाण मोक्खपहदेस ! । जय मयलंछणवज्जिया, जय केवलनाणसंपत्त !" ॥ २५० ॥ इय एवं चक्कलयं, पढिऊणं नमइ चरणवरजुयलं । भत्तिभरनिब्भरंगो जिणाण वरकेवलधराणं ॥ २५९ ॥ अह नमिऊण जिणिदे, उवओगं जाव देइ रिद्धीए । तो पेच्छइ लवमाणं जुवइजणं महुरवयणेहिं ॥ २५२॥ 'तं अम्हाणं सामी' उववण्णो सुकयकम्मपब्भारो । ता भुंज वरे भोए रमणीए तं जहिच्छाए ॥ २५३ ॥ नीलमणिभित्तिघडिए, वेरुलियमाइरयणकब्बुरिए । एए तुह वरभवणे, ता कीसलु सामि ! जहइच्छं ॥२५४॥ अह सो वि कीलमाणो जुवइजणेणं समं वरविमाणे । पेच्छणयविहाणेण य, कीलंतो गमइ कालं ति ॥ २५५ ॥ सो एवं कीलंतो, गमेइ बहुयाई तत्थ अयराइं । वरभोगतग्गयमणो, गयं पि कालं न याणइ ॥ २५६॥ D:\amarata.pm5\3rd proof
SR No.009695
Book TitleRushidatta Charitra Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanbalashreeji
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2011
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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