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________________ [८९ रिसिदत्ताचरिए चउत्थं पव्वं ॥] जह धाऊण सुवण्णं, धणाण जह होइ रयणमिह सारं । तह सारो मणुयभवो, अण्णेसिं होइ जम्माणं ॥२०५॥ महुरो रसो रसाणं, जह सुरही होइ सयलगंधाणं । तह सारो मणुयभवो अण्णेसि होइ जम्माणं ॥२०६॥ इय सयलजाइसारं मणुयत्तं लहिउं जो पमाएइ । संसारोवहिमज्झे पुणो पुणो भमइ सो मूढो ॥२०७॥ जो लहिऊणं एयं, पमायए मूढ इंदियपसत्तो । सो उयहिमज्झवडिओ लळूण तरंडयं मुयइ ॥२०८॥ भवसयसहस्सदुलहं मणुयत्तं लहिउं जो पमाएइ । सो चिंतामणिं मोत्तुं कायमणिं चेव गिण्हेइ ॥२०९॥ लहिऊण मणुयजम्मं न कुणइ जो जिणमयं वरं धम्मं । सो चिंतामणितुल्लं मणुयत्तं चेव हारेड् ॥२१०॥ जेण- "तव-नियम-संजमेहिं होइ पहाणो त्ति एस जिणधम्मो । सेसाणं धम्माणं तहा य पावस्स पडिवक्खो" ॥२११॥ एसो पुण जिणधम्मो जह होइ वेरी एत्थ पावस्स । इम्हि तहा नराहिव ! निसुणसु एक्केण चित्तेण ॥२१२॥ जह गयकुलाणं वेरी होइ मियारी जयम्मि सुपसिद्धो । तह होइ एस वेरी जिणधम्मोऽसेसपावस्स ॥२१३॥ जह जलणो कट्ठाणं वेरी जलणस्स होइ जलनियरो । तह होइ एस वेरी जिणधम्मो चेव पावस्स ॥२१४॥ जह व गयाणं मियारी, अमरवई चेव होइ असुराणं । तह होइ एस वेरी जिणधम्मो चेव पावस्स ॥२१५॥ मज्जारो मूसाणं वेरी नागाण होइ जह गरुडो । तह एस तुमं जाणसु , 'वेरी पावस्स जिणधम्मो' ॥२१६॥ जह दिवसो रयणीए, रयणी पडिवक्खु होइ दिवसस्स । तह एसो पडिवक्खो जिणधम्मो होइ पावस्स ॥२१७॥ D:\amarata.pm5\3rd proof
SR No.009695
Book TitleRushidatta Charitra Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanbalashreeji
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2011
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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